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70 हजार साल पुरानी दाल—रोटी मिली

70 हजार साल से दाल-रोटी खाई जा रही है। इस बात के सबूत मिले हैं। इराक की राजधानी बगदाद से करीब 804 किलोमीटर उत्तर की तरफ एक गुफा है। जिसका नाम है शनिदार (Shanidar Cave)। हाल ही में यहां पर सबसे पुराना जला हुआ शाकाहारी खाना मिला है। जले हुए खाने में दाल-रोटी के अंश मिले हैं। खाने का यह जीवाश्म 40 से 70 हजार साल पुराना है।

इस जले हुए खाने में कई तरह के बीज, जंगली दालें, जंगली सरसों, जंगली फलियां और जंगली घास का मिश्रण मिला है। जिसे देखकर वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि इनसे दाल-रोटी बनाई जाती रही होगी। माना जाता है कि किसी जमाने में शनिदार गुफा निएंडरथल मानवों की आधुनिक बस्ती हुआ करती थी। जबकि, अब तक यह मान्यता रही है कि उस समय के प्राचीन इंसान सिर्फ मांस खाते थे, लेकिन इस सबूत के मिलने से यह बात पुख्ता हुई है कि उनके खान-पान में विभिन्नता थी। वह हर तरह की चीजें खाते थे।

वैज्ञानिकों ने बगदाद के शनिदार गुफा और ग्रीस के फ्रांच्थी गुफा से 9 सैंपल जमा किए। फिर उन्हें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के नीचे स्कैन किया। तब पता चला कि यहां पर दाल, बीज, सरसों, फलियां और खाने लायक जंगली घास मौजूद था। इनमें से पांच फूडग्रेन्स शनिदार से मिले थे। यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च एसोसिएट केरेन काबुकू ने बताया कि यह स्टडी हाल ही में जर्नल एंटीक्विटी में प्रकाशित हुई है।

केरेन ने बताया कि निएंडरथल मानव कई तरह की दालें आदि खाते थे। हमें ये बात कार्बोनाइज्ड टुकड़ों से पता चली यानी जले हुए खाने की जांच करने से। ये टुकड़े इतने घने थे, जिन्हें देखकर लगता है कि ये काफी गाढ़ी दाल रही होगी। फ्रांच्थी से मिले चार खाने के जले हुए यूरोप में मिला सबसे पुराना शाकाहारी खाना है। उनकी उम्र करीब 12 से 13 हजार साल होगी। इन जले हुए खानों को देखकर फिलहाल यह पता किया जा रहा है कि निएंडरथल मानव खाना पकाते कैसे थे। उनकी कुकिंग ट्रिक क्या थी।

पाषाण काल (Stone Age) में तो दालों के इस्तेमाल के काफी सबूत मिले हैं। ये दालों को रगड़कर, तोड़कर, पीसकर या फिर पानी में भिगोकर खाते थे। दालों को तोड़कर या घिसकर बनाए गए खाने को पचाना आसान होता था। साथ ही उसकी पोषकता बची रहती थी। साथ ही खाना पकाने की ट्रिक भी बदल जाती थी। अलग-अलग तरह के दालों को अलग-अलग स्थिति में पकाना होता है।

फ्रांच्थी गुफा में मिली रोटियां बीजों को ग्राइंड करके निकाले गए आटे से बनी थी यानी रोटियां सेंकने का तरीका भी निएंडरथल मानवों को पता थी। यानी मध्य और उत्तरी पैलियोलिथिक काल में खाना पकाने की अलग-अलग पद्धत्तियां विकसित हो चुकी थी। केरेन कहते हैं कि प्राचीन मानव खाने से तीखी चीजों को हटाते नहीं थे। निएंडरथल मानव बीजों के छिलके को हटाते नहीं थे। वो उन्हें संभालते थे या यूं कह लें कि उन्हें शायद ये आता न रहा हो।

कुल मिलाकर यह खोज उन तथाकथित विद्वानों के मूंह पर एक तमाचा है जो भारत के अरबों साल के इतिहास पर बार—बार उंगली उठाते है। जो लोग वेद और शास्त्र पर वर्णित वस्तुओं पर उपहास उड़ाते है, उन लोगों को अब 70 हजार साल पुराना शाकाहारी भोजन का वैज्ञानिक प्रमाण तो मिल चुका है, समय आने के साथ जैसे—जैसे मानव सभ्यता विकसित होगी—उन्हें भारत के प्राचीन इतिहास में वर्णित सभी वस्तुओं के प्रमाण भी मिलने लगेंगे।

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