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गांजे और भांग को लीगल करना चाहते हैं शशि थरूर, जानिये क्या है उनके तर्क

नई दिल्ली,
कांग्रेस नेता और विवादों के चलते सुर्खियों में रहने वाले शशि थरूर ने कहा है कि समय आ चुका है जब भारत को गांजे और भांग जैसे नशे के उत्पाद को कानूनी मान्यता दे देनी चाहिए। थरूर ने दलील दी है कि यह कदम उठाना जरूरी इसलिए हो गया है जिससे दूसरे देश भारत को गांजा-भांग के कारोबार में पीछे न छोड़ दें।

शशि थरूर ने यह मांग एक लेख लिखते हुए जाहिर की है और दावा भी किया है कि नशे के इन उत्पादों को कानूनी मान्यता देने से देश में इसे जुड़ी आपराधिक गतिविधियां पूरी तरह खत्म हो जाएंगी। इसके अलावा भारत का यह कदम ऐसे समय में पूरी दुनिया के लिए मिसाल साबित होगा जब कई देशों में इसे कानूनी मान्यता देने की कवायद जारी है।

शशि थरूर ने अपनी मांग के पीछे यह भी आश्वासन दिया है कि देश में गांजा-भांग के उत्पादन, आपूर्ति और उपयोग को कानूनी मान्यता देने से इसके इस्तेमाल से होने वाले नुकसान में गिरावट आएगी, भ्रष्टाचार और अपराध का ग्राफ नीचे आएगा और इन बदलावों के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को एक बड़ा बूस्ट मिलेगा। अपने एक भतीजे अविनाश थरूर का हवाला देते हुए थरूर ने कहा है कि अविनाश ड्रग्स कंट्रोल के क्षेत्र में काम करता है और वैश्विक स्तर पर की गई रीसर्च से जाहिर है कि गांजा-भांग को कानून मान्यता देने से सभी को फायदा होगा।

थरूर ने बताया कि भारतीय कानून में 1985 में पहली बार भांग पर प्रतिबंध लगाया गया। हालांकि कानून में इस प्रतिबंध को जोड़ने से लगभग दो दशक पहले 1961 में भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नारकोटिक ड्रग्स संधि पर हस्ताक्षर कर दिए थे। हालांकि भारत में कुछ राज्यों में भांग को कानूनी मान्यता है लेकिन गांजा पूरी तरह से प्रतिबंधित है। शशि थरूर ने इस संधि की शब्दावली पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह संधि गांजा और भांग को एक गंभीर बुराई बताते हुए सामाजिक और आर्थिक खतरे से भरा हुआ कहती है। लेकिन थरूर के मुताबिक शराब, तंबाकू समेत कई तरह के ऐसे ड्रग्स जो घरों में दवा के डिब्बे में पाए जाते हैं कि तुलना में गांजा और भांग कम नुकसान पहुंचाते हैं और संधि में इसके नुकसान को अतिश्योक्ति के साथ पेश किया गया है।

शशि थरूर ने कहा है कि गांजा और भांग को कानूनी मान्यता देना हमारा कर्तव्य है। मौजूदा समय में गांजा और भांग के व्यापार को गैरकानूनी बनाकर पूरे कारोबार को आपराधिक बाजार के हवाले कर रखा है। लिहाजा, इसे नियमित करते हुए जरूरत है कि देश में जिम्मेदार किसानों द्वारा इसकी खेती की जानी चाहिए, उत्पादन के बाद इसका परीक्षण चिन्हित लैबोरेटरीज में होना चाहिए और पैकिंग के बाद इसकी बिक्री लाइसेंस प्राप्त रीटेल सेंटर द्वारा की जानी चाहिए। मौजूदा समय में इसे खरीदने के लिए आपराधिक बाजार का दरवाजा खटखटाना पड़ता है जहां किसी भी ऐसे उत्पाद की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं रहती। इसके चलते इसके कुप्रभाव का भी कोई इल्म इनका सेवन करने वालों को नहीं रहता। साथ ही इस बाजार से किसी तरह का राजस्व सरकार के खजाने में नहीं पहुंचता। लिहाजा, इसे मान्यता मिलने से ये खामियां दूर हो जाएंगी और खरीदारों को भी बखूबी पता होगा कि वह कितनी सांद्रता वाले उत्पाद का सेवन कर रहे हैं। वहीं सरकार को मिलने वाले राजस्व से इसके जोखिमों के प्रति लोगों को शिक्षित करने का काम किया जा सकेगा।

शशि थरूर अपने भतीजे के हवाले से लेख में जिक्र किया है कि बीते 50 वर्षों से दुनियाभर में चल आ रहे वॉर ऑन ड्रग्स को अब खत्म किया जा चुका है। इसे खत्म करने के पीछे दुनियाभर के हजारों एनजीओ, राजनेता और वैज्ञानिकों का तर्क शामिल है। खास बात है कि इसमें संयुक्त राष्ट्र के पूर्व प्रमुख कोफी अन्नान और साहित्य के क्षेत्र में नोबेल विजेता मारियो वर्गास लोसा भी शामिल हैं। शशि थरूर की दलील है कि गांजा और भांग गैरकानूनी होने के चलते बड़ी संख्या में लोग जेल में कैद हैं। इनके रखरखाव के साथ-साथ धरपकड़ और मुकदमों में पुलिस प्रशासन का बड़ा खर्च होता है। लिहाजा, इसे कानूनी मान्यता देने से इस खर्च की बचत होगी और साथ ही साथ देश में एक नए उद्योग को खड़ा किया जा सकेगा जिससे देश अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। थरूर ने अपने तर्क को पुख्ता करने के लिए अमेरिका के कोलोराडो राज्य का उदाहरण दिया जहां 2017 के दौरान 1.5 बिलियन डॉलर मूल्य के इस उत्पाद की बिक्री की गई। हालांकि कोलोराडो की जनसंख्या भारत की जनसंख्या का महज 0.4 फीसदी है लिहाजा अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में इसे कानूनी मान्यता मिलने से कितने बड़े कारोबार को खड़ा किया जा सकता है। इसके अलावा शशि थरूर ने कहा कि इस नए कारोबार के सहारे खेतों से लेकर कारखानों और रीटेल मार्केट तक सरकारी हजारों की संख्या में नौकरियों का सृजन कर सकती है।

लिहाजा, इन तर्कों के साथ शशि थरूर कहते हैं कि गांजा और भांग भारत को एक प्रगतिशील छलांग का मौका दे सकते हैं। इस उत्पाद के पौधे भारतीय उपमहाद्वीप में पहले पाए गए जिसके बाद पूरी दुनिया में इसे उगाया गया। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पौधे की दो प्रमुख प्रजातियों में एक कैनेबीस इंडिका का नाम इंडिया पर रखा गया है। इन तथ्यों के बाद जिस तरह से अमेरिका और कनाडा में इस उत्पाद को कानूनी मान्यता देने की कवायद हो रही है, यदि वह सफल होती है तो भारत एक बड़े अवसर से चूक जाएगा।

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