पखांजूर,
छत्तीसगढ़ के पखांजूर मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जंगलों के गोद में बसा महल्ला गांव जिसे नक्सलियों का गढ़ माना जाता है और जहां नक्सलियों की अपनी ही सरकार चलती है वहां आज आजादी के 72 सालों में पहली बार तिरंगा लहराया है।
गांव के लोग पिछले कई दशकों से नक्सली आतंक के साये में अपना जीवन नक्सलियों के फरमान के अनुरूप ही जीते आ रहे हैं। गांव में नक्सलियों का आतंक कुछ ऐसा था कि गांव के 50 परिवारों के 250 लोग 2010 में अपना घर-बार और खेत-खलियान छोड़ पखांजूर पुलिस थाना में शरण लेने को मजबूर हो गए थे। वहीं लोगों के गांव छोड़ने से पूरा गांव उजाड़ बस्ती बन चुका था, लेकिन मजबूरियों के चलते ग्रामीण गांव वापस आए और जीवन यापन करने लगे।
गांव में नक्सलियों के खौफ की वजह से 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय पर्व के मौके पर लाल आतंक का काला झंडा फहराया जाता था और राष्ट्रगान की जगह लाल सलाम के नारे गूंजते थे। गांव के बच्चों को भारतीय संविधान की जगह लाल आतंक के कानून का पाठ पढ़ाया जाता था। बच्चों के समझ विकसित होने के पहले ही उन्हें बंदूक थमा दी जाती। ऐसे में नक्सली मुठभेड़ में कई बार नक्सलियों की जगह गांव की मिट्टी उसके ही बच्चे के खून से लाल हो जाती, लेकिन अब किसी तरह हिम्मत कर गांव वासियों ने पहली बार गांव में तिरंगा फहरा कर नक्सलियों को कड़ी टक्कर दी है।
बता दें 18 फ़रवरी 2018 को मोहल्ला गांव में भारतीय सीमा सुरक्षा बल के 114वां बटालियन का कैम्प लगाया गया था। इसके बाद से ही तैनात जवानों ने गांव छोड़कर चले गए लोगो को वापस लाकर उनके संवैधानिक अधिकार दिलाने का अभियान शुरू किया गया। हालांकि, इस बीच ग्रामीण नक्सली फरमानों और मुख्यधारा से जुड़कर अपना जीवन बेहतर बनाने के कश्मकश में फंसे रहे। जवानों ने विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों और जनसंपर्क द्वारा ग्रामीणों में साहस जगाया जिससे अब गांव छोड़कर चले गए लोग अपने गांव वापस आकर एक नयी उम्मीद के साथ बसने लगे हैं।