आदमपुर (अग्रवाल)
मृत्यु भोज यानि किसी का निधन हो जाने के 3 या 4 दिन बाद समाज को दिया जाने वाला भोज। इस भोज को हमेशा से बुरा माना गया, लेकिन सामाजिक रूढिय़ों के कारण लोग कर्ज लेकर भी इसे करते रहे हैं। लेकिन अब सामाजिक बदलाव आ रहा है और संपन्न लोग भी इससे किनारा कर इस भोज के लिए प्रस्तावित राशि को समाज की दूसरी जरूरतों पर खर्च कर रहे हैं। मृत्यु भोज हिंदू समाज की परम्पराओं में शामिल हैं। बुजुर्गों के निधन के बाद उनकी याद में समाज के साथ नाते रिश्तेदारों को दिया जाने वाला भोज अगर कोई नहीं करता तो समाज उसे कोसता है। लेकिन अब समाज में बदलाव नजर आने लगा है। लोग मृत्यु भोज से किनारा करने लगे हैं। इस पर होने वाले खर्च को या तो सामाजिक कार्यों में या फिर समाज के रचनात्मक कार्यों में खर्च कर रहे हैं। ऐसा ही उदाहरण लाखपुल में बिजली विभाग से यू.डी.सी. के पद से रिटायर्ड हनुमान सिंवर के निधन के बाद बेटों ने पेश किया है। बेटे नरषोत्तम मेजर ने बताया कि पिता हनुमान सिंवर के निधन के बाद मृत्यु भोज न करने का निर्णय लिया और इस राशि को राजकीय विद्यालय लाखपुल, गांव आदमपुर के राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, गुरु जंभेश्वर नंदीशाला, प्रस्तावित पुस्कालय, जांभाणी साहित्य अकादमी व गुरु जंभेश्वर खेल अकादमी को दिया है।
गरीबों के सामने पैदा हो जाती है समस्या
मृत्यु भोज किसी भी समाज के गरीब परिवार के लिए समस्या का कारण बन जाता है। पहले निधन का दुख, फिर कर्मकांड से लेकर अन्य धार्मिक रीति रिवाज और इसके बाद मृत्यु भोज करने की चिंता गरीब परिवार के लिए सबसे बड़ी समस्या थी। मृत्यु भोज को लेकर आ रहा सामाजिक बदलाव खासतौर से गरीबों के लिए राहत भरा है।