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अयोध्या केस : मध्यस्थता के जरिए निकलेगा हल, 3 सदस्यीय पैनल गठित

नई दिल्ली,
अयोध्या मामले में मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आज सुबह 10.30 बजे सुनवाई शुरू हुई। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय पीठ ने इस मामले पर बुधवार को सुनवाई की थी। आज सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल के नाम अपनी तरफ से सुझाए हैं, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पक्षों से नाम मांगे थे, लेकिन नाम नहीं दिए गए थे। मध्यस्थता पैनल में जस्टिस खलिफुल्लाह, श्रीराम पंचू, श्रीश्री रवि शंकर को शामिल किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, मध्यस्थता पैनल के प्रमुख जस्टिस खलिफुल्लाह होंगे, श्रीराम पंचू और श्रीश्री रवि शंकर इस मध्यस्थता कमेटी के सदस्य होंगे। मध्यस्थता की प्रकिया की मीडिया रिपोर्टिंग नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 4 सप्ताह में पक्षकारों के बीच मध्यस्थता कर विवाद का निपटारा करे। पांच जजों की बेंच का फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि मध्यस्थता से मामले की 4 हफ्ते में हो सुनवाई। पैनल को 8 हफ्ते के अंदर सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी, हालांकि इस बीच भी पैनल लगातार कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट सौंपेगा। हिंदू महासभा के स्वामी चक्रपाणि ने कहा कि हम चाहते थे कि श्री श्री रविशंकर इसकी पहल करें। हम इसका स्वागत करते है।
बता दें कि इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट दोनों ही पक्षों से मामले के बातचीत के जरिए हल निकालने को लेकर मध्यस्थता पर फैसला सुरक्षित रखा लिया था। हिंदू पक्षकारों में रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने मध्यस्थता से इनकार किया था। वहीं एक और हिंदू पक्षकार निर्मोही अखाड़े ने कहा था कि वह मध्यस्थता के लिए तैयार है। मुस्लिम पक्ष ने भी मध्यस्थता पर सहमति जताई। सुनवाई के दौरान सबसे पहले एक हिन्दू पक्ष के वकील ने कहा था कि अयोध्या केस को मध्यस्थता के लिए भेजने से पहले पब्लिक नोटिस जारी किया जाना चाहिए। हिंदू पक्षकार की दलील थी अयोध्या मामला धार्मिक और आस्था से जुड़ा मामला है, यह केवल सम्पत्ति विवाद नहीं है। इसलिए मध्यस्थता का सवाल ही नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम हैरान हैं कि विकल्प आज़माए बिना मध्यस्थता को खारिज क्यों किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि अतीत पर हमारा नियंत्रण नहीं है लेकिन हम बेहतर भविष्य की कोशिश जरूर कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा जब वैवाहिक विवाद में कोर्ट मध्यस्थता के लिए कहता है तो किसी नतीजे की नहीं सोचता। बस विकल्प आज़माना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम ये नहीं सोच रहे कि किसी पक्ष को किसी चीज का त्याग करना पड़ेगा। हम जानते हैं कि ये आस्था का मसला है। हम इसके असर के बारे में जानते हैं।’

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