हिसार

करोड़ों की लागत से भव्य बनेगा सीसवाल धाम

750 वर्ष प्राचीन शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य शुरू

मंडी आदमपुर (अग्रवाल)।
आदमपुर के गांव सीसवाल स्थित करीब 750 वर्ष प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य बुधवार को जोर-शोर से शुरू किया गया। करोड़ों रुपये की लागत से होने वाले जीर्णोद्धार के बाद यह मंदिर देशभर के लिए आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र होगा। सुबह मंदिर के जीर्णोद्धार को लेकर स्वामी राजेंद्रानंद महाराज के सान्निध्य में हवन किया गया। जिसमें सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने आहुति दी। शिवलिंग पर दुग्धाभिषेक के साथ मंदिर कमेटी प्रधान घीसाराम जैन की अगुवाई में अतिथियों ने नींव की इंटें रखी। मंदिर परिसर में उमड़े श्रद्धालुओं के जयघोष के साथ विधि-विधान से मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू हुआ। स्वामी राजेंद्रानंद ने कहा कि दान करने से दान कभी कम नहीं होता। दान करने से और भगवान का नाम लेने से कल्याण होता हैं। अतिथियों को मंदिर कमेटी प्रधान घीसाराम जैन, तरसेम गोयल, सरपंच घीसाराम लुगरिया, महामंत्री ब्रह्मानंद गोयल, राकेश शर्मा, हनुमान गोयल, सुभाष गोयल, रोहताश सैनी, डा.शेर सिंह आदि ने सम्मानित किया। इस मौके पर दिल्ली से रमेश गोयल, राकेश कुमार कोहली वाला, प्रेम गोयल खैरमपुरियां, लालमन गोयल, हरिनिवास जांदू, सुयशपाल डूडी, ओमप्रकाश बिश्नोई, सुशील मित्तल, सुभाष अग्रवाल, सतपाल भांभू, सुखबीर डूडी, श्यामलाल जैन, मांगेराम सिंगला, राजकुमार कोहली, अंजनी, मंजनी, पवन जैन, रमेश गर्ग, राजेंद्र भारती, बलवीर सैनी, अजीत सिंह, अमर सिंह यादव, दूनी सिंह, रामकिशन, सुरेश भादू, दलीप बैनीवाल आदि मौजूद रहे।
कारीगरों द्वारा तराशे जा रहे है भरतपुर के पत्थर
शिव मंदिर को भव्य रूप देने के लिए कमेटी द्वारा राजस्थान के भरतपुर जिले के बंशी पहाड़पुर से विशेष पत्थर मंगवाए गए है। कारीगर इन पत्थरों को तराशकर अनेक रूप दे रहे है। आर्किटेक्ट आशीष व कारीगर धीरेन ने बताया कि बंशी पहाड़पुर के पत्थर की खासियत मजबूती और सुंदरता के कारण सदियों से प्रसिद्ध है। इसमें अन्य पत्थरों के मुकाबले अधिक भार सहने की क्षमता और आसानी से पच्चीकारी होने की खासियत के कारण इसकी हमेशा से मांग रही है। संसद, लालकिला, बुलंद दरवाजा सहित अक्षरधाम और इस्कान के अधिकांश मंदिरों में बंशी पहाड़पुर का पत्थर लगा है। इस पत्थर में रुनी यानी स्टोन कैंसर नहीं होता। बारिश से पत्थर के रंग में निखार आता है। इसी कारण अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए इसका चयन हुआ है।

पांडवों ने की थी शिवलिंग की स्थापना

प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने महाभारत काल के दौरान की थी। मंदिर का ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व इस तथ्य से साफ हो जाता है कि पुरातत्व विभाग के पास इस मंदिर का पिछले 750 सालों का रिकार्ड उपलब्ध है। बताया जाता है कि इससे पूर्व का रिकार्ड स्वतंत्रता आंदोलन में जल गया था। हिसार से उत्तर-पश्चिम दिशा में सिंधु घाटी की सभ्यता व मोहन जोदड़ो-हड़प्पा कालीन सभ्यता की समकालीन प्राचीन सीसवालिय सभ्यता वर्तमान गांव सीसवाल की जगह पनपी। सीसवालिय सभ्यता के कारण इस गांव का नाम सीसवाल पड़ा जो सरस्वती नदी की सहायक नदी दृश्दवंती के किनारे बसा हुआ था। भारतीय पुरातत्व विभाग की खुदाई से इस सभ्यता का पता चला। प्रसिद्ध इतिहासकार डा.के.सी. यादव के शोध पत्रों मेें इसका विस्तृत विवरण मिलता है। भिवानी के पास नौरंगाबाद में सैन्धव सभ्यता पनपी। सीसवालिय लोगों की संपन्नता को देखते हुए सैन्धवों ने सीसवालिय लोगों पर आक्रमण कर दिया। हालांकि इस युद्ध में हार-जीत का वर्णन नही मिलता लेकिन इस युद्ध के बाद दोनों सभ्यताएं आत्मसात होकर एक हो गई तथा इसके सीसवालिय-सैन्धव सभ्यता कहा जाने लगा। सीसवाल कुरुक्षेत्र-हस्तिनापुर जितना पुराना है। करीब 5,150 साल पहले महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव सीसवालिय वनों में भी रहे तथा मां कुंती शिव भक्त थी। अपने कुछ समय के प्रवास के दौरान माता कुंती के आदेश पर पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की जो वर्तमान में शिव मंदिर में मौजूद है। बताया जाता है कि मंदिर के स्थान पर पहले एक फ्रास का पेड़ हुआ करता था जहां एक संत तपस्या करते थे। तपस्यारत संत को एक बार स्वप्न में पेड़ के नीचे शिवलिंग दबा हुआ दिखाई दिया। संत ने ग्रामीणों को इसकी जानकारी दी। बाद में खुदाई करने पर 9-10 फीट लंबा शिवलिंग मिला जो पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। यही शिवलिंग इस मंदिर की नियति का आधार बना। इसे एक चमत्कार व दैवयोग ही कहा जाएगा कि जब मंदिर निर्माण के लिए सामग्री को लेकर चिंता की गई तो आकाशवाणी हुई कि निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाए, सामग्री उसी वृक्ष के नीचे से मिल जाएगी। मंदिर का निर्माण वृक्ष के नीचे से मिली तमाम आवश्यक सामग्री के साथ निर्बाध गति से हुआ। शिवालय में अब तक सुरक्षित पड़ी ईंट भी उसी वृक्ष के नीचे से निकली हुई बताई जाती है।

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