धर्म

आत्मज्ञान के लिए गुरु के प्रति श्रद्धा का होना आवश्यक

गुरु के प्रति श्रद्धा होने से गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान शिष्य के हृदय में उतरने लगता है, अन्यथा श्रद्धा के बिना वह ज्ञान, शब्दों के रूप में बुद्धि में इकट्ठा हो जाता है। शिष्य में जब ज्ञान की जिज्ञासा होती है तब उसकी गुरु में श्रद्धा जगने लगती है। जब व्यक्ति को लगे कि मुझे ज्ञान, प्रेम और आनंद चाहिए, तब गुरु में श्रद्धा जगती है। जब व्यक्ति को लगे कि मुझे हर पल खुशी से जीने की कला सीखनी चाहिए और यह मुझे गुरु ही सिखा सकता है, तब गुरु में श्रद्धा जगती है। जब शिष्य को जीवन का उद्देश्य जानना हो, तब गुरु में श्रद्धा जगती है। जब प्रकृति की तरफ व्यक्ति की पकड़ ढीली और गुरु की तरफ ज्यादा होने लगती है, तब श्रद्धा जगती है। यदि व्यक्ति को प्रकृति में रस आता है और गुरु केवल नाम के लिए है तब शिष्य की श्रद्धा हिलती रहती है। जब गुरु का पलड़ा भारी हो जाए, तब श्रद्धा जगती है। जब जीवन में गुरु ही महत्वपूर्ण लगे, तब श्रद्धा जगती है।
शुरू में व्यक्ति गुरु के पास अपनी घर-गृहस्थी की प्रकृति को सुलभ करने के लिए आता है और गुरु से वैसे ही प्रश्न करता है। लेकिन गुरु अपने शिष्य की प्रकृति को सुलभ नहीं करता, बल्कि आत्मज्ञान देता है, जिससे शिष्य की प्रकृति अपने आप सुलभ हो जाती है। श्रद्धा का शिष्य की घर-गृहस्थी की उलझन से सीधे लेना-देना नहीं है। श्रद्धा केवल ज्ञान से बढ़ती है। इसलिए शिष्य का प्रश्न प्रकृति का होता है और गुरु केवल ज्ञान बोलते हैं। प्रकृति का प्रश्न होने पर भी गुरु उत्तर ज्ञान का ही देते हैं।
गुरु के ज्ञान से शिष्य की बुद्धि का विकास होने लगता है, जिससे प्रकृति में उलझी बुद्धि खुल जाती है। गुरु का ज्ञान हमारी बुद्धि को बड़ा करता है। जैसे 50 लीटर के पात्र में आधा लीटर दूध बहुत कम लगता है, लेकिन आधा लीटर के पात्र में वह दूध ज्यादा दिखता है, ऐसे ही प्रकृति में उलझी बुद्धि छोटी होती है लेकिन जब गुरु बुद्धि का विकास करते हैं, तब प्रकृति की उलझन परेशान नहीं करती। गुरु के पास जब व्यक्ति आता है तब वह ज्ञान के हिसाब से अल्पबुद्धि या बुद्धिहीन होता है, गुरु के ज्ञान से बुद्धि खुलती जाती है। गुरु प्रकृति को सुलझाने के लिए नहीं है बल्कि गुरु के ज्ञान से प्रकृति सुलझ जाती है। गुरु जानते हैं कि शिष्य की प्रकृति आज सुलभ हो जाएगी, लेकिन कल फिर उलझ जाएगी। इसलिए गुरु प्रकृति को सुलझाने वाला ज्ञान ही देते हैं।
यदि प्रकृति को सुलभ करने से श्रद्धा जगती तो तलाक से पहले जो मध्यस्थ होते हैं या मनोवैज्ञानिक जो परिवार की उलझन को सुलझाते हैं उनके प्रति भी श्रद्धा जग जाती, लेकिन ऐसा नहीं होता। पहले शिष्य गुरु में श्रद्धा बढ़ाता है फिर गुरु, शिष्य की श्रद्धा को सींचते हैं।

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