धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—485

एक दार्शनिक समस्याओं के अत्यंत सटीक समाधान बताते थे। एक बार उनके पास एक सेनापति पहुंचा और स्वर्ग-नरक के विषय में जानकारी चाही। दार्शनिक ने उसका पूर्ण परिचय पूछा तो उसने अपने वीरतापूर्ण कार्यों के बारे में सविस्तार बताया।

उसकी बातें सुनकर दार्शनिक ने कहा – शक्ल सूरत से तो आप सेनापति नहीं भिखारी लगते हैं। मुझे विश्वास नहीं होता कि आप में हथियार उठाने की क्षमता भी होगी। दार्शनिक की अपमानजनक बातें सुनकर सेनापति को गुस्सा आ गया। उसने म्यान से तलवार निकाला ली।

यह देखकर दार्शनिक ठहाका लगाते हुए बोले – अच्छा तो आप तलवार भी रखते हैं। यह शायद काठ की होगी। लोहे की होती तो अब तक आपके हाथ से छूटकर गिर गई होती। अब तो सेनापति आप से बाहर हो गया। उसकी आँखे क्रोध से लाल हो गई और वह दार्शनिक पर हमला करने को उद्यत हो गया। तभी दार्शनिक ने गंभीर होकर कहा – बस यही नरक है।

क्रोध में उन्मत होकर आपने अपना विवेक खो दिया और मेरी हत्या करने को तत्पर हो गए। दार्शनिक की बात सुनकर सेनापति ने शांत होकर तलवार म्यान में वापस रख ली। तब दार्शनिक ने कहा – विवेक जाग्रत होने पर व्यक्ति को अपनी भूलों का अहसास होने लगता है।

मन शांत होने से स्थिरता आती है और दिव्य आनंद की अनुभूति होती है। यही यह है कि आत्म – नियंत्रण से विवेक उपजता है जिसके कारण अनुचित कर्म या व्यवहार पर रोक लगती है और जीवन में शांति व संतोष की अनुभूति होती है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमारा व्यवहार ही हमें स्वर्ग और नरक के दर्शन जीते—जी सुख और दु:ख के माध्यम से करवाता है। इसलिए सदा शांत रहने का प्रयास करें। क्रोध में किया गया व्यवहार ही दु:खों का कारण बनता है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—437

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—34

Jeewan Aadhar Editor Desk

ओशो : निंदा रस