धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—76

संकट के समय में आपसी वैर-भाव को भूल जाओ और सब मिलकर आई हुई मुसीबतों का सामना करो तो विजय निश्चित तुम्हारी होगी। यदि यह शिक्षा भारतवासियों ने समझ ली होती तो भारत कभी परतन्त्रता की बेडिय़ों में नहीं जकड़ा जाता। फूट के कारण ही भारत परतन्त्र हुआ। मुहम्मद गजनबी ने जब सुना कि भारत सोने की चिडय़ा है, तो समृद्धभारत को लूटने चला। अरब से पाकिस्तान आया, जो पंजाब का हिस्सा था, वहां पहुंचा।

जो आजकल मुलतान-शहर है, वहां नरसिंह भगवान हुए थे। गजनबी ने नरसिंह भगवान के मंदिर को तोड़ डाला। गुजरात में सोमनाथजी का मंदिर, जो सोने का बना हुआ था तथा प्रतिमाओं में कीमती हीरे मोती जड़े हुए थे,उनको लूट लिया।

जब पुष्कर में आया,तो अजमेर के राजा ने अपनी सेना तैनात की और कहा, हे वीरों गर्दन भले ही कट जाए,लेकिन दुश्मन आगे बढऩे न पाए। पुष्कर में भँयकर युद्ध हुआ, धोखे से वहाँ का राजा युद्ध में मारा गया। उसके बाद गुजरात में आया और सोमनाथ मंदिर को घेर लिया। राजा भी मंदिर के पुजारी से पूछकर हर कार्य किया करते थे,पूछा : हे पुजारी जी। मंदिर को चारो ओर से गजनबी ने घेर लिया,क्या करे?

महन्त जी ने कहा,हे राजन् ड़मरू बजाओ,शिव शंकर भगवान अपने आप रक्षा करेंगे तथा मुख से बम-बम बोलते रहो। देखते देखते उसने मंदिर तोड़ दिया और हीरे-मोती, जवाहरात आदि को लूटकर ले गया।

यदि उस समय सभी ने मिलकर गजनबी का सामना किया होता तो उसको मुँह की खानी पड़ती और मंदिर भी नहीं लूटते। कहने का तात्प्रय यही है कि संकट के समय मिलकर उनका मुकाबला करो। हमारे देवता या भगवान हमको कायर बनना नहीं सिखाते। यदि सभी कार्य पूजा-पाठ से हो जाते,तो हनुमानजी को लंका दहन नहीं करना पड़ता,श्रीरा बाण मार कर समुद्र से रास्ता न मांगते,श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र न चलाना पड़ता,अत: समयानुसार अपनी रक्षा हेतु किसी से युद्ध भी करना होता है तो वीरता से करो,पाप का नाश करो,साधु जनों की रक्षा करना धर्म है।

अन्याय को समाप्त कर न्याय की रक्षा करना आपका कर्तव्य है। परमात्मा भी उनकी रक्षा करते हैं जो अपनी रक्षा अपने आप करते हैं।

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