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रामजन्म भूमि विवाद : जानें 1526 से लेकर 2020 तक की पूरी कहानी

(जीवन आधार डेस्क)
फरगान का आक्रमणकारी जहीर उद-दीन मुहम्मद बाबर, 1526 ई. में पानीपत के पहले युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंशज सुल्तान इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में दाखिल हुआ था। बाबर ने इसके साथ ही भारत में मुगल वंश की स्थापना की और यहां बड़े पैमाने पर मस्जिदों का निर्माण कराना शुरू किया। उसने पानीपत में पहली मस्जिद बनवाई थी। इसके दो साल बाद बाबर ने 1527 में अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई, जो बाबरी मस्जिद के नाम से जानी जाती है। इस मस्जिद को बनवाने के लिए बाबर ने ऐसी जगह चुनी जिसे हिंदू अपने अराध्य भगवान श्रीराम का जन्म स्थान मानते थे।

1853 में पहली बार हिंसा
देश में जब तक मुगलों का शासन रहा तब तक अयोध्या में विवादित स्थल को लेकर कभी कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ। अंग्रेजों के शासनकाल में 1853 में पहली बार इस स्थल के पास सांप्रदायिक हिंसा हुई, उस वक्त भी हिंदू यहां बनी मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनवाना चाहते थे। लोगों को शांत करने के लिए अंग्रेज सरकार ने एक फॉर्मूला ढूंढा। इसके तहत यहां विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी गई। बाबरी मस्जिद परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी।

राजीव गांधी ने दिया हिंदुओं को दर्शन का अधिकार
1949 में यहां पर भगवान राम की मूर्तियां पाई गई। इसके बाद विवाद बढ़ता गया और कार्रवाई भी की जाती रही। इसके बाद राजीव गांधी ने 1986 में उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीर बहादुर सिंह को मनाया और राम जन्मभूमि मंदिर के ताले खुलवाए। तब से हिंदुओं को भगवान श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला।
1989 में चुनावी भाषणों में राजीव गांधी अक्सर देश में रामराज्य लाने का वादा करते हुए शुरुआत करते। इतना ही नहीं, राजीव गांधी ने नवंबर 1989 में विश्व हिंदू परिषद को राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दी। तब तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को भी शिलान्यास में भाग लेने के लिए भेजा था।
चेन्नई में अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब राजीव गांधी से राम मंदिर पर प्रश्न पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि इस पर आम राय बनाने की काेशिशें जारी हैं। अयोध्या में ही राम जन्मभूमि मंदिर बनेगा।

नरसिम्हा सरकार ने दिया अयोध्या एक्ट
राजीव गांधी के बाद प्रधानमंत्री बने पी.वी.नरसिम्हा राव ने भी राम जन्मभूमि मंदिर के प्रति अपनी तैयारी दिखाई थी। केंद्र में उनकी ही सरकार थी, जब 6 दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई। हालांकि, इसके कुछ ही दिन बाद यानी जनवरी 1993 में राव सरकार विवादित जमीन के अधिग्रहण के लिए एक अध्यादेश लेकर आई थी। इस अध्यादेश को 7 जनवरी 1993 को उस समय के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने मंजूरी दी थी। राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चव्हाण ने इस बिल को मंजूरी के लिए लोकसभा में रखा। पास होने के बाद इसे अयोध्या एक्ट के नाम से जाना गया।
नरसिम्हा राव सरकार ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन के साथ चारों तरफ 60.70 एकड़ जमीन को कब्जे में लिया। उस समय योजना अयोध्या में राम मंदिर, एक मस्जिद, लाइब्रेरी, म्यूजियम और अन्य सुविधाओं के निर्माण की थी। हालांकि, बीजेपी ने राव सरकार के कदम का विरोध किया था। बीजेपी के साथ मुस्लिम संगठन भी विरोध में थे। राव सरकार ने इस मसले पर प्रेसिडेंशियल रेफरेंस का इस्तेमाल किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राय देने से मना कर दिया था।

बीजेपी ने 1990 में की रथ यात्रा
मंदिर निर्माण आंदोलन के लिए बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने 1990 में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए रथ यात्रा शुरू की थी। हालांकि, आडवाणी को बिहार के तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर जिले में गिरफ्तार करवा लिया था। जब पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया था तब आडवाणी ने इस पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह बड़ी बात है कि ईश्वर ने उन्हें इस आंदोलन से जुड़ने का मौका दिया।

आंदोलन को इन नेताओं ने दी धार
लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंहल, बालासाहेब ठाकरे समेत कई कद्दावर नेता राम मंदिर निर्माण के आंदोलन को लगातार धार देते रहे।

राम मंदिर आंदोलन के बीच सुर्खियों में थी उमा भारती
राम मंदिर आंदोलन में पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। विवादित ढांचे के विध्वंस की जांच के लिए बने आयोग ने उमा भारती की भूमिका को भी दोषपूर्ण पाया था। दरअसल, अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों की भीड़ ने विवादित ढांचे को गिरा दिया था। उनकी आस्था थी कि किसी प्राचीन मंदिर को ढहाकर वह मस्जिद बनाई गई थी। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी समेत तमाम बीजेपी नेता उस वक्त राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख नेता थे।

2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्णय
वर्ष 2010, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया। फिर वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।

विपक्ष का तंज, ‘मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन…’
वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया। बीजेपी के शीर्ष नेताओं पर आपराधिक साजिश के आरोप फिर से बहाल किए। यही नहीं, 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेज दिया। पैनल को 8 सप्ताह के भीतर कार्यवाही खत्म करने को कहा। 1 अगस्त 2019 को मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट पेश। इस पर 2 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान करने में विफल रहा। इस बीच रामलला अयोध्या में टेंट के भीतर थे। मामला राजनीतिक रंग ले चुका था। विपक्षियों के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की नरेंद्र मोदी सरकार पर लगातार तंज जारी थे कि मंदिर वहीं बनाएंगे, पर तारीख नहीं बताएंगे।

…और रामलला के पक्ष में आया फैसला
70 साल तक चली लंबी कानूनी लड़ाई, 40 दिन तक लगातार मैराथन सुनवाई के बाद 9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया। राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति यानी 5-0 से ऐतिहासिक फैसला सुनाया। निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना। टॉप कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा विवादित जमीन को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक करार दिया। आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया।

वीएचपी के राम मंदिर मॉडल का किस्सा
वीएचपी ने 8 अक्टूबर 1984 को अयोध्या से राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत की थी। इसके बाद 1989 में प्रस्तावित मॉडल भी वीएचपी ने संतों से स्वीकृत करा लिया था और इसी मॉडल के जरिए वीएचपी ने राम मंदिर को लेकर पूरे देश में जनजागरण अभियान भी चलाया था। पहली बार प्रस्तावित राम मंदिर का मॉडल 2001 के कुंभ में श्रद्धालुओं के लिए लाया गया था। उसके बाद से 2007, 2013 और 2019 के कुंभ के दौरान भी यह मॉडल प्रयागराज में रखा गया था।

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