हिसार

फसल अवशेषों को जलाने की बजाय उसके उचित प्रबंधन की दी जानकारी

एचएयू में फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर तीन दिवसीय प्रशिक्षण शुरू

हिसार,
किसान फसलों के अवशेष को जलाने की बजाय उनका उचित प्रबंधन करें। इससे पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है और जमीन की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ा सकते हैं।
यह बात हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षण संस्थान के सह-निदेशक डॉ. अशोक कुमार गोदारा ने ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर प्रशिक्षणार्थियेां को संबोधित करते हुए कही। प्रशिक्षण का आयोजन विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. आर.एस. हुड्डा के मार्गदर्शन व देखरेख में किया जा रहा है। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से आह्वान किया कि वे न केवल स्वयं बल्कि अन्य किसानों को भी इस बारे मेें जागरूक करें और फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताएं। उन्होंने संस्थान द्वारा बेरोजगार युवाओं के लिए चलने वाले विभिन्न कौशल कार्यक्रमों की भी विस्तार से जानकारी दी।
फसल विविधिकरण से बताया अवशेषों का प्रबंधन
सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षण संस्थान के सहायक निदेशक(बागवानी) डॉ. सुरेंद्र सिंह ने धान-गेहू फसल चक्र में बागवानी फसलों के माध्यम से विविधिकरण करने बारे बताया ताकि फसल अवशेष को जलाना न पड़े और गिरते भू-जलस्तर को रोका जा सके। क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान उचानी (करनाल) के सहायक वैज्ञानिक(सस्य विज्ञान) डॉ. संदीप रावल ने फसल अवशेष प्रबंधन के तरीकों की जानकारी देते हुए इसके जलाने के दुष्प्रभावों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। उन्होंने बताया कि फसल अवशेषों को जमीन में दबाने से भूमि की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी होती है और फसल अवशेषों में जो पोषक तत्व होते हैं वे जमीन को उपलब्ध हो जाते हैं। प्रशिक्षण के संयोजक डॉ. संदीप भाकर ने फसल अवशेषों के जलने से मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण व जमीन पर पडऩे वाले दुष्प्रभावों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि अवशेष जलाने से कार्बनडाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं, जिनका मानव जीवन व पशु-पक्षियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सहायक वैज्ञानिक (फार्म मशीनरी) डॉ. अनिल सरोहा ने फसल अवशेषों के प्रबंधन में प्रयुक्त होने वाली मशीनों जैसे हैप्पी सीडर, जिरो टिलेज, रोटोवेटर, हे-रैक आदि के उपयोग की जानकारी दी। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न जिलों के 30 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं।

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