किसान आंदोलन को देशभर में मिल रहा भारी समर्थन, तुरंत मांगे माने केन्द्र सरकार
हिसार,
राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे किसान आंदोलन के लंबा खिंचने के साथ ही जहां इसका समर्थन बढ़ता जा रहा है वहीं देशभर के हर वर्ग में सरकार के खिलाफ रोष भी फैल रहा है। वैसे गहराई में जाने पर यह बात साबित होती है कि इस आंदोलन का बीज स्वयं भाजपा ने ही बोया था जब वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने व किसानों को लागत का डेढ़ गुणा भाव देने की बड़ी-बड़ी बातें करके अर्धनग्न प्रदर्शन व आंदोलन किए थे। भाजपा का बोया बीज आज उसी के लिए समस्या बनकर खड़ा हो गया है।
यह बात रोडवेज कर्मचारी नेता रमेश सैनी ने देशभर में चल रहे किसान आंदोलन व इसके प्रति सरका के रवैये पर टिप्पणी करते हुए कही। उन्होंने कहा कि भाजपा ने अपने 6 वर्षों के शासन के दौरान अपने ही वादे से मुकर कर अपने चहेते कारपोरेट घरानों को सीधा फायदा पहुंचाने के लिए कोरोना की आड़ में कृषि के तीन कानून व बिजली बिल राज्यसभा में बिना वोटिंग करवाए तानाशाहीपूर्ण ढंग से पास करवा दिए। इस कानूनों में फसल का समर्थन मूल्य खत्म होने व बिजली भी कारपोरेट घरानों के हाथों में जाने से केवल किसान ही नहीं बल्कि आम गरीब जनता का जीवन भी बर्बाद हो जाएगा। इन काले कानूनों के खिलाफ शुरू हुआ किसानों का यह आंदोलन एक क्रांतिकारी मुद्दा बन गया है परंतु केन्द्र की मोदी सरकार ने अपने बड़े पंूजीपति आकाओं के इन काले कानूनों के रद्द करने एवं एमएसपी की कानूनी गारंटी देने की बजाय इस आंदोलन को बदनाम करने की सारी हदें पार कर दी है। यहां तक कि किसानों को देशद्रोही व खालिस्तानी होने तक के आरोप लगा दिए लेकिन जनता ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया। सरकार के तमाम आरोपों के बावजूद देशभर के किसान संगठन बिना विचलित हुए बड़ी सूझबूझ एवं अनुशासित ढंग से भाईचारा को और मजबूत करते हुए पिछले एक माह से कडक़ड़ी ठंड में दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं।
रमेश सैनी ने कहा कि ऐसे हालात में प्रधानमंत्री के सामने दो ही रास्ते बचते हैं कि एक तो वे कारपोरेट घरानों के दबाव से निकलकर किसान विरोधी तीनों काले कानून व बिजली बिल रद्द करके एमएसपी कानून की गारंटी देने की घोषणा कर दें। यदि वे ऐसा करते हैं तो प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के स्तर पर एक बड़े नेता के रूप में उभर कर आएंगे। दूसरा, किसानों की मांग न मानकर उन्हें बलपूर्वक उठाने की हिम्मत करना परंतु यदि उन्होंने ऐसा किया तो देशभर में ऐसी स्थिति बन जाएगी, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। इसलिए प्रधानमंत्री को तुरंत किसान विरोधी तीनों काले कानून रद्द करके किसानों का मसीहा बनना चाहिए क्योंकि अब प्रधानमंत्री के पास और कोई रास्ता नहीं है।