हरियाणा व दिल्ली राज्यों के कृषि विज्ञान केंद्रों की राज्य स्तरीय योजना (2021) कार्यशाला आयोजित
हिसार,
जल संरक्षण और फसलों का विविधिकरण मौजूदा समय की अति जरूरी मांग है। इसके लिए वैज्ञानिकों को ऐसी योजनाएं बनानी होंगी जिससे न केवल जल का संरक्षण हो बल्कि किसान फसल विविधिकरण को भी अपनाने के लिए सहमत हो जाए।
यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक(विस्तार शिक्षा) डॉ. ए.के. सिंह ने कही। वे सोमवार को हरियाणा व दिल्ली के कृषि विज्ञान केंद्रों की राज्य स्तरीय योजना कार्यशाला को ऑनलाइन संबोधित कर रहे थे जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह विशिष्ट अतिथि थे। इस वर्चुअल कार्यशाला का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली व हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के विस्तार शिक्षा निदेशालय की ओर से आयोजित किया गया। कार्यशाला का शुभारंभ आईसीएआर के गीत से किया गया। इस कार्यशाला में आईसीएआर की कृषि तकनीकी अनुप्रयोग संस्थान, जोन-2 जोधपुर (राजस्थान) के करीब 67 कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि चावल व गेहूं के फसल चक्र को बदलना बहुत जरूरी है ताकि पानी का अधिक से अधिक संरक्षण किया जा सके।
आधुनिक तकनीक अपनाने के लिए किसानों को जागरूक करें : प्रो. समर सिंह
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह ने कहा कि किसानों को नई कृषि तकनीकों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें अपनी कृषि उत्पादकता बढ़ाने में सक्षम बनाया जा सके। इसके लिए वैज्ञानिकों का कर्तव्य बनता है कि वे किसानों को विश्वविद्यालय द्वारा विकतिस आधुनिक तकनीकों जैसे जीरो टिलेज, लेजर लेवलिंग, बेड प्लांटिंग, सूक्ष्म एवं टपका सिंचाई आदि को अपनाने के लिए जागरूक करें। मिट्टी और पानी जैसे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए संरक्षण कृषि पर जोर देना चाहिए। मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए पोषक तत्वों के अतिरिक्त खनन की जांच करनी होगी। देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रदेश में स्थूल और सूक्ष्म पोषक तत्वों दोनों के असंतुलित उपयोग की मुख्य समस्या है। इसलिए, हमें फसल उत्पादकता को बनाए रखने के लिए उर्वरकों की सिफारिश और अपनाने के बीच की खाई को पाटना होगा। आवास की बढ़ती मांग, शहरीकरण और औद्योगीकरण के बढ़ते स्तर के कारण, उपजाऊ कृषि भूमि का महत्वपूर्ण क्षेत्र गैर-कृषि उपयोग में स्थानांतरित किया जा रहा है। ये कारक किसानों की खाद्य सुरक्षा और आजीविका के अवसरों को खतरे में डाल रहे हैं। सबसे अधिक प्रभावित होने वाले संसाधन पानी, मिट्टी, उर्वरक, अन्य रासायनिक इनपुट, वायु और लोग हैं। इसलिए, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकी (आरसीटी) पर ध्यान देने की सख्त आवश्यकता है, जो खेती की लागत को कम करने, मिट्टी के कार्बन निर्माण को बेहतर बनाने, पानी के बहाव को कम करने और मिट्टी के क्षरण आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
इन कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिक हुए शामिल
विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. आर.एस. हुड्डा ने बताया कि इस कार्यशाला में विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2021 की कार्ययोजना को लेकर विस्तारपूर्वक चर्चा की और भविष्य के लिए किसान हितैषी योजनाओं को प्राथमिकता दी। इस कार्यशाला में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से हिसार, फरीदाबाद, फतेहाबाद, कैथल, जींद, रोहतक, सोनीपत, भिवानी, यमुनानगर, झज्जर, कुरूक्षेत्र, महेंद्रगढ़, सिरसा, पानीपत, एनडीआरआई करनाल, आईएआरआई नई दिल्ली, कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली, गैर सरकारी संगठन अंबाला व रेवाड़ी आदि के वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया।