रावण को अपनी शक्ति का अहंकार था। इसी अहंकार की वजह से वह सभी को कमजोर समझता था। अपनी शक्ति के अहंकार में एक दिन रावण कैलाश पर्वत पहुंच गया। उस समय शिव जी ध्यान में लीन थे। रावण ने शिव जी को कैलाश पर्वत सहित उठाकर अपने साथ लंका ले जाना चाहता था। रावण कैलाश पर्वत को उठाने लगा, तभी शिव जी ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत का भार बढ़ा दिया। पर्वत का भार बढ़ने से रावण कैलाश को उठा नहीं सका और उसका हाथ पर्वत के नीचे दब गया।
पर्वत के नीचे दबे हाथ को निकालने की रावण ने बहुत कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। तब रावण ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। शिव जी रावण द्वारा रचे गए शिव तांडव स्तोत्र को सुनकर प्रसन्न हो गए और कैलाश पर्वत का भार कम कर दिया, इसके बाद रावण ने पर्वत के नीचे से हाथ निकाल लिया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथजी, अहंकार के कारण ही रावण कैलाश पर्वत उठाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली और उसका हाथ पर्वत के नीचे दब गया। जब रावण ने अहंकार छोड़कर शिव जी की भक्ति की, तब उसे शिव कृपा मिली। जब हम अहंकार छोड़कर विनम्रता की ओर बढ़ते हैं, तब ही भगवान की कृपा मिलती है।
जब रावण का हाथ पर्वत के नीचे दबा, तब उसने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए भक्ति की। शिव तांडव स्तोत्र रचा। इसके फलस्वरूप उसे शिव कृपा मिल गई और उसका दुख दूर हो गया। हमें भी मुश्किल समय में भगवान की भक्ति नहीं छोड़नी चाहिए।