धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—607

पुराने समय में एक सेठ के पास संत भिक्षा मांगने पहुंचे। सेठ भी धार्मिक स्वभाव का था। उसने एक कटोरी चावल का दान का संत को कर दिया। सेठ ने संत से कहा कि गुरुजी मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं।

संत ने कहा कि ठीक पूछो, क्या पूछना चाहते हो? सेठ ने पूछा कि गुरुजी मैं ये जानना चाहता हूं कि लोग लड़ाई-झगड़ा क्यों करते हैं? संत ने कहा कि मैं यहां भिक्षा लेने आया हूं, तुम्हारे मूर्खतापूर्ण सवालों के जवाब देने नहीं आया।

संत के मुंह से ऐसा सुनते ही सेठ क्रोधित हो गया। वह सोचने लगा कि ये कैसा संत है, मैंने इसे दान दिया और ये मुझे ही ऐसा जवाब दे रहा है। सेठ ने गुस्से में संत को खूब खरी-खोटी सुना दी। कुछ देर बाद सेठ शांत हो गया, तब संत ने कहा कि जैसे ही मैंने तुम्हें कुछ अप्रिय बोला, तुम्हें गुस्सा आ गया। गुस्से में तुम मुझ पर चिल्लाने लगे, इस स्थिति में अगर मैं भी तुम पर गुस्सा हो जाता तो हमारे बीच झगड़ा हो जाता।

संत ने सेठ को समझाया कि क्रोध ही हर झगड़े की जड़ है। अगर हम क्रोध नहीं करेंगे तो कभी वाद-विवाद होगा ही नहीं। गुस्से में काम सुधरते नहीं है और ज्यादा बिगड़ जाते हैं। इसीलिए क्रोध को काबू करने की कोशिश करनी चाहिए, तभी जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। हमेशा धैर्य बनाए रखना चाहिए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जब सामने वाला क्रोधित हो तो दूसरे को शांत रहना चाहिए। क्रोधित व्यक्ति जब शांत हो जाए तो ही उससे बात कीजिए। इससे न केवल झगड़े से बचे रहेंगे बल्कि दूसरे को उसकी गलती का अहसास भी करवा पाओगे।

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