धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—610

श्रीराम और रावण के युद्ध के समय की घटना है। रावण के कई महारथी असुर मारे जा चुके थे। उस समय रावण ने अपने भाई कुंभकर्ण को नींद से जगाया। कुंभकर्ण ब्रह्मा जी के वरदान की वजह से 6 माह तक लगातार सोते रहता था और एक बार उठकर खाता-पीता और फिर सो जाता था।

रावण ने कुंभकर्ण को अधूरी नींद में जगाया और श्रीराम से युद्ध के बारे में सब कुछ बताया। कुंभकर्ण भी बहुत ज्ञानी था, वह जानता था कि श्रीराम सामान्य इंसान नहीं हैं।

कुंभकर्ण ने रावण को समझाने के लिए कहा कि भाई, आपने श्रीराम से बैर लेकर अच्छा नहीं किया है। देवी सीता का हरण करके पूरी लंका को खतरे में डाल दिया है। श्रीराम स्वयं नारायण के अवतार हैं। हमें देवी सीता को सकुशल लौटा देना चाहिए, इसी में हम सब की भलाई है।

कुंभकर्ण ये बातें सुनकर रावण ने सोचा कि ये तो ज्ञान और धर्म की बातें कर रहा है। रावण ने कुंभकर्ण के सामने मांस-मदिरा रखवा दी। मांस-मदिरा खाने-पीने के बाद कुंभकर्ण की बुद्धि पलट गई और वह भी श्रीराम से युद्ध करने के लिए तैयार हो गया।

जब कुंभकर्ण युद्ध के मैदान में पहुंचा तो उसका मुलाकात विभीषण से हो गई। विभीषण ने बताया कि किस तरह रावण ने उसे लात मारकर लंका से निकाल दिया था और श्रीराम ने उसे शरण दी है।

कुंभकर्ण ने विभीषण से कहा कि भाई तूने तो बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन मैंने रावण के दिए हुए मांस-मदिरा का सेवन किया है, इस कारण मुझे तो राम से युद्ध करना ही होगा। मैं सही-गलत जानता हूं, लेकिन रावण की संगत से मेरी बुद्धि पलट गई है। अब मेरी मुक्ति का समय आ गया है। युद्ध में जब कुंभकर्ण का सामना श्रीराम से हुआ तो श्रीराम ने कुंभकर्ण का वध कर दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें अच्छे लोगों की संगत में रहना चाहिए। बुरे लोगों की संगत में रहने से सही-गलत जानते हुए भी व्यक्ति गलत काम देता है।

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