मित्रता शब्द छोटा है। लेकिन इसे निभाना काफी कठिन है। भगवान कृष्ण से मित्रता निभाना सीखना चाहिए, उन्होंने हर मु्श्किल वक्त में पांडवों का साथ दिया। ऐसा करके उन्होंने साबित किया कि मित्र वही अच्छे और सच्चे होते हैं जो कठिन परिस्थिति में भी आपके साथ हो। ऐसे में आपको भी ऐसे मित्र बनाने चाहिए, जो हर मुश्किल में आपके साथ रहें।
धर्मप्रेमी सज्जनों, जो मित्र मुश्किल वक्त में साथ छोड़ दे या फिर शत्रुओं के लिए तालमेल बिठाने में लग जाए—ऐसे इंसान मित्र नहीं होते। वे केवल स्वार्थ के चलते आपके करीब आए थे। आपके अच्छे समय का फायदा उठाने के लिए आए थे। वे इंसान की सूरत में सियार थे। आपका मुश्किल में आए तो मित्र ने किनारा कर लिया। ऐसे इंसान मित्रता को बदनाम करते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों से मित्रता की। उनके अच्छे—बुरे समय में सदा उनका साथ दिया। जब अर्जुन का मन युद्ध के मैदान में भटक गया तो उसका मार्गदर्शन के लिए गीता का उपदेश दिया। त्रिलोकी का नाथ होने के बाद भी अर्जुन के रथ के सारथी बने। द्रोपदी का चीर बढ़ाकर उसके नारीत्व की रक्षा की। कदम—कदम पर पांडवों का साथ देकर भगवान श्रीकृष्ण ने मित्रता की मिशाल कायम की।
जब सुदामा भूख से तड़फना लगा तो उसे बचपन का मित्र श्रीकृष्ण याद आया। भिखारी वेश में सुदामा जब अपने मित्र के पास पहुंचा तो श्रीकृष्ण ने सिंहासन छोड़कर स्वयं अपने हाथ से उसके पैर धोएं। उसे गले से लगाकर अपने साथ सिंहासन पर बैठाया। सुदामा के बिना कुछ मांगे ही उसके लिए महल बनाकर दिया और उसकी दरिद्रता को सदा के लिए दूर कर दिया।
प्रेमी सुंदरसाथ जी, भगवान श्री कृष्ण ने इस लीला के माध्यम संदेश दिया कि यही सच्ची मित्रता है। जहां धन,पद—प्रतिष्ठा और मान—सम्मान सब कुछ भूलाकर एक—दूसरे के सुख—दुख को सांझा किया जाए—वहीं मित्रता होती है। इसलिए जब भी मित्रता कीजिए, भगवान श्रीकृष्ण की भांति कीजिए।