महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका में अपने परिवार के साथ रहने के लिए चले गए। लेकिन कुछ समय के बाद उनके यादववंश में ही झगड़े होने लगे। घर में ही युद्ध जैसे हालात हो गए। श्री कृष्ण ने समझ लिया कि परिवार की मर्यादाओं को बचाने के लिए अब सब छोड़ देना ही अच्छा है। उन्होंने द्वारिका को समुंद्र में डूबो दिया।
जिस द्वारका को उन्होंने बनवाया था उसे ही समुंद्र में डूबा दिया। उनके वंशज आपस में झगड़ते हुए समाप्त हो गए। श्रीकृष्ण सब शांतभाव से देखते रहे। श्रीकृष्ण ने साफ कहा कि जिस परिवार में मद्य, अहंकार और व्यसन का आवागमन हो जाता है उसका सर्वनाश होना ही बेहतर है। वे स्वयं सब कुछ छोड़कर जंगल में तप करने के लिए चले गए। द्वारका को डूबोने से पहले उन्होंने पूरी प्रजा में ऐलान कर दिया था कि द्वारका डूबने वाली है जिसे प्राण प्रिय है वे द्वारका को छोड़कर अन्यंत्र कहीं चले जाएं।
श्रीकृष्ण की लीला दर्शाती है कि परिवार और घर से मोह या प्रेम रखना जरुरी है लेकिन उतना ही जरुरी है परिवार में अनुशासन को बनाकर रखना। परिस्थितियां बिगड़ने लगे, परिवार या समाज के लिए संकट हो जाए तो घर और परिवार का त्याग करने की हिम्मत भी इंसान में होनी चाहिए। परिवार वाले कितने ही प्रिय क्यों ना हों, अगर गलत काम करते हैं तो उन्हें भी दंड मिलना चाहिए।