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तुमने कभी अनाथालय जाकर देखा है? मैं एक गांव में एक घर में ठहरा। वे एक अनाथालय चलाते थे। मुझे अनाथालय ले गएञ मैं देखकर बड़ा हैरान हुआ- सब बच्चों के पेट बड़े हैं। मैंने पूछा: और सब तो ठीक है,मगर यह क्या मामला है? इन सब बच्चों के पेट इतने बड़े क्यों है? उन्होनें कहा ये बच्चे बहुत भोजन करते हैं। इनको रोकने में भी हमें अच्छा नहीं लगता,क्यों अनाथ बच्चे हैं। मगर हमारी समझ में नहीं आता। क्योंकि हमारे घर में भी बच्चे हैं उनको तो पकड-पकडक़र भेजन करवाना पड़ता है। और वे भागते हैं। वे कहतै हैं: हमें भूख नहीं है। अभी मुझे खेलने जाना हैं। अभी और हजार काम है। अभी मेरा मित्र आया हुआ। मगर ये बच्चे भोजन की थाली नहीं थोड़ते।जीवन आधार जनवरी माह की प्रतियोगिता में भाग ले…विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीत सकते है हर माह नकद उपहार के साथ—साथ अन्य कई आकर्षक उपहार..अधिक जानकारी के लिए यहां क्ल्कि करे।
कारण?-चिंता। अनाथ बच्चा चिंतित है,कल को कोई भरोसा नहीं है बचैन है परेशान है, परेशानी और बेचैनी में आदमी ज्यादा भोजन करता है।
तुम भी ख्याल रखना,जब भी तुम प्रसन्न होते हो,भोजन कम करोगे। प्रफल्लित होओगे, ज्यादा भोजन कम करोगे, हल्का होगा भोजन। और जब उदास होगे ,ज्यादा भोजन लोगे। अमरीका में मोटापे की बीमारी जोर से फैल रही है। उसका कुल कारण इतना है भरी ङ्क्षचता पैदा हो गई है। भारी बेचैनी है, घबड़ाहट है। जिंदगी पूरे समय जैसे एक भूंकप पर ठहरी है। तो ध्यान के साथ ऐसा हो जायेगा कि भोजन कम हो जाएगा। नौकरी की तलाश है..तो जीवन आधार बिजनेस प्रबंधक बने और 3300 रुपए से लेकर 70 हजार 900 रुपए मासिक की नौकरी पाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
यह ठीक हुआ। और ध्यान के साथ कामवासना में भी रूचि कम हो जाएगी, क्यों ऊर्जा ऊपर की तरफ बहने लगेगी। यह भी ठीक हुआ। और ध्यान के साथ ऐसी भी घड़ी आ जाएगी कि जब शांति बनने लगेगी और शांति रहने लगेगी,तो सोच उठता है:अब ध्यान की क्या जरूरत? तो ध्यान टूट जाएगा। यह सब ठीक हुआ। मगर इस पर ही अगर रूकना हो गया, तो खतरा हो जाएगा। अब एक कदम और आगे बढ़ाना हैं। अब ध्यान बिना जरूरत के करो। क्योंकि जरूरत वाला ध्यान बहुत गहरा नहीं जाता। अब ध्यान गरैजरूरत के करो। अब ध्यान मौज से करो, आंनद से करो। पहले ध्यान आंनद के लिए करते थे,अब आंनद के कारण करो। क्योंकि कई दफे ऐसा हो जाता है कि चिंतित आदमी ज्यादा भोजन करता है,और गैर-चिंतित आदमी जरूरत से कम करने लगता है। वह भी खतरनाक है। वह भी नुकसानदायक है। जरूरत देखो शरीर की। सम्यक् भोजन करो।
और पति की अगर जरूरत शेष है, तो पहले तुम अपनी वासना के कारण संभोग में उतरती थी,अब करूणा के कारण,प्रेम के कारण उतरो। पति की अभी जरूरत शेष हैं। पति से प्रेम है या नहीं? ध्यानी का प्रेम तो गहरा हो जाएगा। पति की पीड़ा को समझो। और अगर पति के साथ पत्नी ध्यानपूर्ण अवस्था में रहकर संभोग में उतरे,तो जल्दी ही पति के जीवन में भी संभोग की गहराई बढऩी शुरू हो जायेगी। ध्यान की गहराई बढऩी शुरू हो जायेगी- संभोग की गहराई के साथ-साथ। क्योंकि संभोग के क्षण में ध्यान जितनी आसानी से एक दूसरे में उतर जाता है,किसी और क्षण में नहीं उतरता।
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अब पति पर करूणा करो। पति को परेशानमत करो। यह इसलिए मैं कह रहा हूं कि यह ही जोड़े का मामला नहीं है,और जोड़ो का मामला भी है। पति का ध्यान बढ़ जाता है,तो उसका रस चला जाता है। पत्नी तड़पती है। अक्सर ऐसा होता है कि स्त्रियां यह दिखाती रहती है भाव कि उन्हें रस नहीं है कामवासना में। लेकिन जैसे ही पति ध्यान में उतरता है और उसका रस जाता है,पत्नी घबड़ाती है। क्योंकि पति से सारा संबंध ही यही था कि पति उसके पीछे चलता था, उसकी जरूरत थी, अब जरूरत खत्म हो हो रही है,कहीं संबंध ही न टूट जाए। जरूरत ही खत्म हो गई,तो संबंध कैसे होगा?
तो एक बहुत हैरानी की घटना रोज मेरे सामने आती है। पति अगर ध्यान में गहरा उतरता है,पत्नी एकदम कामवासना में उत्सुक हो जाती है,जितनी वह कभी उत्सुक नहीं थी। या उत्सुक तो रही होगी,लेकिन दिखलाती नहीं थी। अब मौका छोडऩे जैसा नहीं है। वह एकदम पति के पीछे पड़ जाती है। और पति को अब रस नहीं है। अब उसको संभोग में उतरना व्यायाम जैसा मालूम पड़ता है। व्यर्थ का व्यायाम। नाहक की परेशानी।
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