द्वारिका के डूब जाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण जंगल में एक वृक्ष के नीचे परमधाम का ध्यान लगाकर बैठे थे। उनके पैर के अंगूठे की चमक मणि की भांति दूर तक चमक रही थी। एक शिकारी दूर से उस चमक की तरफ आकर्षित हो रहा था। उसे लगा कोई जानवर वहां बैठा है। अंधेरे में उसके नेत्र की ये चमक है।
उसने चमक का निशाना लगाकर तीर छोड़ा। तीर सीधे श्रीकृष्ण के पैर के अंगूठे पर जा लगा। तीर के लगते ही शिकारी वहां पहुंचा। उसने पश्चाताप आरंभ किया तो श्रीकृष्ण ने उसे बताया कि इस संसार में उनका समय पूरा हो गया। अब उन्हें अपने लोक परमधाम पहुंचना है।
मानव देह को त्याग करने के लिए तुम्हारा तीर केवल बहानाभर है। जो इस संसार में देहधारण करके आयेगा, उसकी मृत्यु निश्चित है। ये कहकर श्रीकृष्ण अपनी देह का त्याग करके परमधाम चले गए। बाद में अर्जून वहां पहुंचा तो वहां केवल श्रीकृष्ण की देह थी।
प्रेमी सुंदरसाथ जी, श्रीकृष्ण ने इस लीला के माध्यम से संदेश दिया है कि आप कितने भी सक्षम हों, शक्तिशाली हों, जन्म लेने वाले हर इंसान को ये शरीर छोड़ना पड़ता है। बड़े से बड़े इंसान के साथ भी ऐसी परिस्थितियां बन सकती है कि उसके अंतिम समय में कोई मित्र या परिवार का सदस्य उसके साथ ना रहे। सृष्टि के नियम सबके लिए समान है। इंसान जन्म भी अकेला लेता है और उसकी मृत्यु भी अकेले की ही होती है। कोई साथ नहीं जाता। इसलिए मृत्यु से भय नहीं मानना चाहिए। मृत्यु के बाद परिवार को चाहिए कि वह रुदन के स्थान पर संतों को बुलाकर सत्संग करवाएं। मृत्यु ही जीवन का अंतिम सत्य है।