व्यावहारिक क्षेत्र में कौन-सी चीज कितनी सार्थक है, इसका विचार विवेकशील मन ही कर सकता है। खाना-पीना और शांति से रहना भी तो मानसिक तृप्ति के लिए ही होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि तर्कशास्त्र भी मननशीलता के ऊपर ही निर्भर है, चाहे किसी मतवाद की बातें क्यों न लें। वर्तमान परिवेश में मनुष्य के मन की परिस्थिति को ध्यान में रखकर एक आध्यात्मिक व्यक्ति ही एक समुचित दर्शन दे सकता है। अर्थात नियमित साधना से आगे बढ़ने से ही मनुष्य आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। आनंद मार्ग ऐसा ही एक दर्शन है। इसलिए अध्यात्म विद्या की आराधना में जो सुख मिलेगा, वह नित्य सुख है और उसे ही आनंद कहते हैं। अनित्य वस्तुओं से आनंद नहीं मिलता। अनित्य वस्तुएं आएंगी, कभी हंसाएंगी या कभी रुलाएंगी। अनित्य जगत में चाहे कितनी भी प्रिय वस्तुएं पाओ, एक दिन तुम्हें कंगाल बनाकर और रुलाकर चली जाएंगी। लेकिन नित्य वस्तु कभी तुम्हें नहीं रुलाएगी। वह नित्य है, अपरिणामी है और अपरिवर्तनशील सत्ता है।
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यम कहते हैं, ‘हे नचिकेता, तुम्हारे सामने ब्रह्मधाम का द्वार खुल गया है। तुमने विनाशशील तथा विनाशरहित दोनों प्रकार की वस्तुओं का ज्ञान अर्जित किया है। मननशीलता की वृद्धि के साथ-साथ जीव खंड सुख से बृहत सुख की ओर अर्थात आनंद की ओर अग्रसर होता है। उस समय उतना ही वह शरीरगत सुख छोड़कर, मानसिक सूक्ष्म सुख की ओर झुकता है। देश प्रेम या ऐसे ही अनेक सूक्ष्म सुखों के लिए मनुष्य अपनी देह को उत्सर्ग करने में जरा भी नहीं हिचकता। ये मनुष्य के उन्नत मन का लक्षण है।’ आनंद मार्ग के बताए अष्टांग योग की साधना के द्वारा साधक धीरे-धीरे अपनी छिपी हुई मनन शक्ति को जगा सकता है और उस उन्नत मन की सहायता से अंत में आत्मिक स्थिति पा सकता है। जीवन आधार जनवरी माह की प्रतियोगिता में भाग ले…विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीत सकते है हर माह नकद उपहार के साथ—साथ अन्य कई आकर्षक उपहार..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
इस आत्मिक स्थिति में ही उसे सच्चा आनंद मिल सकता है। प्राकृत ज्ञान के द्वारा यह नहीं मिल पाएगा, मोटी-मोटी पोथियां पढ़कर ब्रह्म ज्ञान का अर्जन नहीं होता। निष्ठा जगाने की इच्छा करो। निष्ठा जग जाने से भगवत कृपा अवश्य होगी। इस भगवत कृपा का लेश मात्र प्राप्त हो जाने पर भी मनुष्य का अपने स्थूल शरीर से ‘मैं’ का बोध हट जाता है और यह विवेक ही उसे ब्रह्मस्वरूप में प्रतिष्ठित करता है। याद रखो, साधना मार्ग में सबसे बड़ी बात है निष्ठा। निष्ठा रहे तो भगवत कृपा अवश्य होगी। नौकरी की तलाश है..तो जीवन आधार बिजनेस प्रबंधक बने और 3300 रुपए से लेकर 70 हजार 900 रुपए मासिक की नौकरी पाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
उपयुक्त साधना के द्वारा ही मनुष्य इस देहगत आसक्ति तथा अन्य तमाम तरह की आसक्तियों को जीत सकता है। अष्टांग योग साधना हमारे सूक्ष्म से सूक्ष्मतर रूप को जगा सकती है। इस साधना के प्रभाव से मनुष्य की सब तरह की आसक्तियों का बंधन लुप्त होते चले जाते हैं। नियमित साधना के द्वारा साधक परम लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है।
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