धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—171

एक दुकानदार व्यवहार—शास्त्र की पुस्तक पढ़ रहा था। उसी समय एक सीधे-साधे व्यक्ति ने आकर कौतूहलवश पूछा– “क्या पढ़ रहे हो भाई ?”

इस पर दुकानदार ने झुँझलाते हुए कहा -“तुम जैसे मूर्ख इस ग्रंथ को क्या समझ सकते हैं।” उस व्यक्ति ने हँसकर कहा- “मैं समझ गया, तुम ज्योतिष का कोई ग्रंथ पढ़ रहे हो, तभी तो समझ गए कि मैं मूर्ख हूँ।”

दुकानदार ने कहा- ‘ज्योतिष नहीं, व्यवहार-शास्त्र की पुस्तक है।” उसने चुटकी ली -“तभी तो तुम्हारा व्यवहार इतना सुंदर है।” दुकानदार व्यक्ति का जवाब सुनकर काफी लज्जित हुआ।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी! दूसरों को अपमानित करने वालों को स्वयं अपमानित होना पड़ता है। पढ़ने का लाभ तभी है जब उसे व्यवहार में लाया जाए। य​दि आप पढ़े—लिखे होने के बावजूद भी अपना व्यवहार सौम्य नहीं बना पाए तो आपसे वो अनपढ़ भला है जो व्यवहार में सौम्य, स्वभाव में करुणामयी और बोली में मीठा है।

शिक्षा प्राप्त करने के बाद आपमें पद—प्रतिष्ठा,धन—माया और जात—पात का अहं है तो आप शिक्षित नहीं केवल डिग्रीधारक है। शिक्षा अहंकार को समाप्त करती है। शिक्षा नैतिकता सिखाती है। शिक्षा दयाशील बनाती है। शिक्षा व्यवहारिक बनाती है। इसलिए डिग्री ले पाओ या ना ले पाओ, लेकिन शिक्षित अवश्य बनना।

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