युधिष्ठिर उसी विषैले तालाब के पास जा पहुँचे, जिसका जल पीकर उनके चारों भाई मृत-से पड़े हुए थे। यह देखकर युधिष्ठिर चौंक पड़े। असह्य शोक के कारण उनकी आँखों से आँसू बह चले।
कुछ देर यो विलाप करने के बाद युधिष्ठिर ने ज़रा ध्यान से भाइयों के शरीरों को देखा और अपने आपसे कहने लगे—“यह तो कोई मायाजाल-सा लगता है। आसपास ज़मीन पर किसी शत्रु के पाँव के निशान भी तो नज़र नहीं आ रहे हैं। हो सकता है कि यह भी दुर्योधन का ही कोई षड्यंत्र हो। संभव है पानी में विष मिला हो।” सोचते-सोचते युधिष्ठिर भी प्यास से प्रेरित होकर तालाब में उतरने लगे। इतने में वही वाणी सुनाई दी। युधिष्ठिर ने ताड़ लिया कि कोई यक्ष बोल रहा है। उन्होंने बात मान ली और बोले—“आप प्रश्न कर सकते हैं।”
यक्ष ने कई प्रश्न किए, जिनके उत्तर युधिष्ठिर ने दिए—
प्र.—मनुष्य का साथ कौन देता है?
उ.—धैर्य ही मनुष्य का साथी होता है।
प्र.—कौन सा शास्त्र (विद्या) है, जिसका अध्ययन करके मनुष्य बनता है?
उ.—कोई भी शास्त्र ऐसा नहीं है। महान लोगों की संगति से ही मनुष्य बुद्धिमान बनता है।
प्र.—भूमि से भारी चीज़ क्या है?
उ.—संतान को कोख में धारण करने वाली माता भूमि से भी भारी होती है।
प्र.—आकाश से भी ऊँचा कौन है?
उ.—पिता।
प्र.—हवा से भी तेज़ चलनेवाला कौन है?
उ.—मन।
प्र.—घास से भी तुच्छ कौन सी चीज़ होती है?
उ.—चिंता।
प्र.—विदेश जाने वाले का कौन साथी होता है?
उ.—विद्या।
प्र.—घर ही में रहने वाले का कौन साथी होता है?
उ.—पत्नी।
प्र.—मरणासन्न वृद्ध का मित्र कौन होता है?
उ.—दान, क्योंकि वही मृत्यु के बाद अकेले चलने वाले जीव के साथ-साथ चलता है।
प्र.—बर्तनों में सबसे बड़ा कौन सा है?
उ.—भूमि ही सबसे बड़ा बर्तन है, जिसमें सब कुछ समा सकता है।
प्र.—सुख क्या है?
उ.—सुख वह चीज़ है, जो शील और सच्चरित्रता पर स्थित है।
प्र.—किसके छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है?
उ.—अहंभाव के छूट जाने पर।
प्र.—किस चीज़ के खो जाने से दुख नहीं होता है?
उ.—क्रोध के खो जाने से।
प्र.—किस चीज़ को गँवाकर मनुष्य धनी बनता है?
उ.—लालच को।
प्र.—संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?
उ.—हर रोज़ आँखों के सामने कितने ही प्राणियों को मृत्यु के मुँह में जाते देखकर भी बचे हुए प्राणी, जो यह चाहते हैं कि हम अमर रहें, यही महान आश्चर्य की बात है।
इसी प्रकार यक्ष ने कई अन्य प्रश्न भी किए और युधिष्ठिर ने उन सबके ठीक-ठीक उत्तर दिए। अंत में यक्ष बोला—“राजन्! मैं तुम्हारे मृत भाइयों में से एक को जीवित कर सकता हूँ। तुम जिस किसी को भी चाहो, वह जीवित हो जाएगा।”
युधिष्ठिर ने पलभर सोचा कि किसे जीवित कराऊँ? थोड़ी देर रुककर बोले—“मेरा छोटा भाई नकुल जी उठे।”
युधिष्ठिर के इस प्रकार बोलते ही यक्ष ने सामने प्रकट होकर पूछा—“युधिष्ठिर। दस हज़ार हाथियों के बलवाले भीमसेन को छोड़कर तुमने नकुल को जीवित करवाना क्यों ठीक समझा?”
युधिष्ठिर ने कहा—“यक्षराज! मैंने जो नकुल को जीवित करवाना चाहा, वह सिर्फ़ इसी कारण कि मेरे पिता की दो पत्नियों में से माता कुंती का बचा हुआ एक पुत्र तो मैं हूँ, मैं चाहता हूँ कि माता माद्री का भी एक पुत्र जीवित हो उठे, जिससे हिसाब बराबर हो जाए। अतः आप कृपा करके नकुल को जीवित कर दें।”
“पक्षपात से रहित मेरे प्यारे पुत्र! तुम्हारे चारों ही भाई जी उठें,” यक्ष ने वर दिया।
उन्होंने युधिष्ठिर के सद्गुणों से मुग्ध होकर उन्हें छाती से लगा लिया और आशीर्वाद देते हुए कहा—“बारह बरस के वनवास की अवधि पूरी होने में अब थोड़े ही दिन बाक़ी रह गए हैं। बारह मास तक जो तुम्हें अज्ञातवास करना है, वह भी सफलता से पूरा हो जाएगा। तुम्हें और तुम्हारे भाइयों को कोई भी नहीं पहचान सकेगा। तुम अपनी प्रतिज्ञा सफ़लता के साथ पूरी करोगे।” इतना कहकर धर्मदेव अंतर्धान हो जाए।
वनवास की कठिनाइयाँ पांडवों ने धीरज के साथ झेल लीं। अर्जुन इंद्रदेव से दिव्यास्त्र प्राप्त करके वापस आ गया। भीमसेन ने भी सुगंधित फूलों वाले सरोवर के पास हनुमान से भेंट कर ली थी और उनका आलिंगन प्राप्त करके दस गुना अधिक शक्तिशाली हो गया था। मायावी सरोवर के पास युधिष्ठिर ने स्वयं धर्मदेव के दर्शन किए और उनसे गले मिलने का सौभाग्य प्राप्त कर लिया था। वनवास की अवधि पूरी होने पर युधिष्ठिर ने ब्राह्मणों की अनुमति लेकर उन्हें और अपने परिवार के अन्य लोगों से कहा कि वे नगर को लौट जाएँ। युधिष्ठिर की बात मानकर सब लोग नगर लौट आए और यह ख़बर उड़ गई कि पांडव हम लोगों को आधी रात में सोया हुआ छोड़कर न जाने कहाँ चले गए। यह सुनकर लोगों को बड़ा दुख हुआ। इधर पांडव वन में एक एकांत स्थान में बैठकर आगे के कार्यक्रम पर सोच-विचार करने लगे। युधिष्ठिर ने अर्जुन से पूछा—“अर्जुन! बताओ कि यह तेरहवाँ बरस किस देश में और किस तरह बिताया जाए?”
अर्जुन ने जवाब दिया—“महाराज! इसमें संदेह नहीं है कि हम बारह महीने बड़ी सुगमता के साथ इस प्रकार बिता सकेंगे कि जिसमें किसी को भी हमारा असली परिचय प्राप्त न हो सके। अच्छा यही होगा कि हम सब एक साथ ही रहें। कौरवों के देश के आसपास पांचाल, मत्स्य, वैदेह, बाल्हिक दशार्ण, शूरसेन, मगध आदि कितने ही देश हैं। इसमें से आप जिसे पसंद करें, वहीं जाकर रह जाएँगे। यदि मुझसे पूछा जाए, तो मैं कहूँगा कि मत्स्य देश में जाकर रहना ठीक होगा। इस देश के अधीश राजा विराट है। विराट नगर बहुत ही सुंदर और समृद्ध है। मेरी तो ऐसी ही राय है। आगे आप जो उचित समझें।”
युधिष्ठिर ने कहा—“मत्स्याधिपति राजा विराट बड़े शक्ति संपन्न हैं। दुर्योधन की बातों में भी वह आने वाले नहीं हैं। अत: राजा विराट के यहाँ छिपकर रहा जाए।”