किसी गांव में एक संत घर-घर जाकर भिक्षा मांग रहे थे। घूमते-घूमते संत एक दुकान पर पहुंच गए। दुकानदार से भिक्षा मांगने के लिए संत उसके पास पहुंचे। दुकान में बहुत सारे छोटे-बड़े डिब्बों रखे हुए थे। दुकान की सजावट बहुत अच्छी थी। संत उसकी दुकान देखकर बहुत प्रभावित हुए।
संत ने दुकानदार से पूछा कि भाई तुमने इतने सारे डिब्बों में क्या-क्या भर रखा है। दुकानदार ने जवाब दिया कि घर के लिए जरूरी सभी चीजें हैं, किराने का सामान है, मसाले और अन्य चीजें हैं।
संत ने एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए पूछा कि भाई उस डिब्बे में क्या है? दुकानदार ने कहा कि उसमें तो लाल मिर्च है। संत ने दूसरे डिब्बे के बारे में पूछा तो दुकानदार ने बताया कि उसमें नमक है।
इस तरह संत ने दुकानदार से कई डिब्बों के बारे में पूछ लिया। दुकानदार संत के सम्मान में उनके सभी सवालों का जवाब दे रहा था। तभी संत ने अलग रखे हुए एक डिब्बे के बारे में पूछा कि उसमें क्या है, इसे अलग क्यों रखा है?
दुकानदार बोला कि उसमें राम हैं। इसलिए अलग रखा है।
ये बात सुनकर संत हैरान हो गए। उन्होंने सोचा कि डिब्बे में राम कैसे हो सकते हैं? संत ने ये बात दुकानदार से पूछी। दुकानदार ने कहा कि जिस डिब्बे में कुछ नहीं होता है यानी जो डिब्बा खाली होता है, उसके लिए हम यही कहते हैं कि उसमें राम हैं। हम डिब्बे को खाली नहीं कहते हैं।
ये बात सुनते ही संत आश्चर्यचकित हो गए कि इस दुकान वाले ने कितनी बड़ी और गहरी बात कह दी है। जिस बात को समझने के लिए मैं इधर-उधर भटक रहा हूं, वह बात इतनी आसानी से इस व्यक्ति ने समझा दी है।
संत ने सोचा कि मैं तो भगवान की कृपा के लिए कब से भक्ति कर रहा हूं, दर-दर भटक रहा हूं, लेकिन मैं बात नहीं समझ पा रहा था कि मुझे भगवान की कृपा क्यों नहीं मिल रही है। जब तक मेरे मन में बुराइयां हैं, मेरा मन फालतू बातों से भरा हुआ है, तब तक मुझे भगवान की कृपा नहीं मिल सकती। भक्ति का आनंद लेने के लिए सबसे पहले मुझे मेरे मन को खाली करना होगा, तभी उसमें भगवान आ सकेंगे।
धर्मप्रेमी सु्ंदरसाथ जी, अधिकतर लोगों के मन में गुस्सा, लालच, मोह, घमंड, दूसरों के लिए जलन और गलत विचार जैसी बुराइयां हैं, तब तक हमारा मन भक्ति में लग ही नहीं पाएगा। भक्ति में मन लगाना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले इन बुराइयों को खत्म करना होगा। जब मन शांत और पवित्र हो जाएगा तो भक्ति में आनंद भी मिलेगा और भगवान की कृपा भी मिल जाएगी।