धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—203

बात उस समय की है जब महात्मा गौतम बुद्ध एक आम के बगीचे में विश्राम कर रहे थे। तभी वहां खेलते हुए बच्चों की एक टोली आ गयी। सभी बच्चे आम का बगीचा देख कर, आम तोड़ने के लिए वहीं रुक गये।

बच्चों ने आम तोड़ने के लिए आम के पेड़ पर पत्थर मरना शुरू किया। देखते ही देखते जमीन पर आमों का ढेर लग गया।

इतने में एक बच्चे ने थोड़े ऊंचे आम को तोड़ने के लिए एक पत्थर ज्यादा तेज फेंका। वह पत्थर विश्राम कर रहे महात्मा जी को जा कर लगा और उनके माथे से खून आने लगा। सभी बच्चे यह देख कर बहुत डर गए। उन्हें लगा अब तो बुद्ध जी उनको बहुत डाटेंगे।

तभी उनमे से एक बालक डरता हुआ महात्मा जी के पास गया और उनसे हाथ जोड़ते हुए बोला, हे महात्मा! हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी है। हमें क्षमा कर दीजिए। हमारी वजह से आपको यह पत्थर लग गया और आपके माथे से खून आ गया।

इस बात को सुन कर, महात्मा बुद्धा ने बच्चों से कहा, मुझे इस बात का दुख नहीं है की मुझे पत्थर लगा। पर दुख इस बात का है की पेड़ को पत्थर मारने से पेड़ तुम्हे मीठे फल देता है। लेकिन मुझे पत्थर मारने से तुम्हें डर मिला।

इस तरह अपनी बात पूरी कर के महात्मा जी आगे चल दिए। और बच्चे भी आम बटोर कर वापस अपने अपने घर चले गए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कोई अगर हमारे साथ बुरा व्यव्हार करता है, तब भी हमें उसके साथ अच्छा व्यव्हार ही करना चाहिए। जिस प्रकार पेड़ को पत्थर मारने पर भी वह बदले में मीठे फल ही देता है उसी प्रकार हमें भी सभी के साथ मधुर व्यव्हार रखना चाहिए।

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