धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—256

एक साधारण गरीब आदमी जो रास्ते पर कपड़े बेच कर अपनी रोजी रोटी बड़ी मुश्किल से जुटाता था। वो रोजाना बिना टाले अपने पास वाले मंदिर में जाता, मंदिर की साफ सफाई करता और भगवान से प्रार्थना करता कि भगवान मुझे ढेर सारा धन दे दो। उसको इस तरह से रोज रोज आते देख एक बार भगवान ने उसको दर्शन दे ही दिए और उससे पूछ लिया, क्या तुम सिर्फ इसलिए मंदिर की सेवा करते हो कि तुमको धन मिल पाए?

आदमी ने बड़ी सरलता से और इमानदारी से जवाब दिया,”हां भगवान यही तो एक कारण है कि मैं यहां रोज आता हूं! गरीबी की वजह से ना मैं अपनी इच्छा पूरी कर पाता हूं ना ही घर वालों की। न जाने मेरे जीवन में सुख के दिन कब आएंगे?”

भगवान ने उससे कहा,” तुम चिंता मत करो, जब तुम्हारे अच्छे दिन आने वाले होंगे तो तुम्हें पता भी नहीं चलेगा। जो आदमी सच्चे मन से जिस वस्तु की कामना करता है वह उसे अवश्य मिलती है।” भगवान अंतर्धान हो गए। वह आदमी भी वहां से चला गया और अपने दैनिक काम पर लग गया।

कुछ ही दिनों बाद उसकी परिस्थिति बदलने लगी। उसके कपड़े पहले से बहुत ज्यादा बिकने लगे। धीरे-धीरे उसने अपनी खुद की एक दुकान खोली। वह दुकान भी शहर में काफी मशहूर हो गई। वो काफी पैसे वाला बन गया। आदमी बहुत ज्यादा व्यस्त रहने लगा, इतना व्यस्त की उसका अब मंदिर जाना ही छूट गया!

कई सालों बाद जब वह आदमी बूढ़ा हो गया तब अचानक एक दिन मंदिर आकर साफ सफाई करने लगा! भगवान ने फिर से उसके सामने प्रकट होकर उसको दर्शन दिए और पूछा,”बड़े लंबे समय बाद आए हो? सुना है बहुत बड़े सेठ बन गए हों! क्या अब भी जीवन में कोई कमी है जिसे पूरा करने के लिए फिर से मंदिर की सेवा करने आए हो?”

आदमी भगवान की तरफ देखता ही रह गया उसकी आंखों में आंसू थे वह बोला,”भगवान आप ने मुझे सब कुछ दिया। किसी चीज की कोई कमी नहीं है। बेटे बेटी की शादी भी अच्छे खासे घराने में करा दी है। लेकिन यह सब होते हुए भी मन को कभी शांति नहीं मिली! हमेशा मन करता था कि मंदिर आकर सेवा करू लेकिन कर ना पाया।”

भगवान ने उससे कहा,”मैंने वह सब दिया जो तुमने मांगा था। रही बात मन की शांति कि तो वह तुमने कभी मांगी ही नहीं! तुम्हें एक राज की बात बताता हूं मन की शांति कभी मांगने से भी नहीं मिलती। जब निस्वार्थ भाव से कोई मेरी शरण में आता है, मेरी सेवा करता है तो उसे बिना मांगे ही शांति मिल जाती है।”

आदमी भगवान की तरफ देखता रह गया और उसकी आंखों में आंसू की धारा बहने लगी। वह बोला,” भगवान में मूर्ख था जो मैंने आपकी सेवा के बदले आपसे धन मांगा। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए बस मुझे आपकी सेवा करने दीजिए!”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जीवन में आप कितने ही पैसे कमा लीजिए, कितनी ही शोहरत हासिल कर लीजिए, कितनी ही लग्जरियस लाइफ जी लीजिए। यह सब कुछ भी मायने नहीं रखेगा अगर आपके मन को शांति नहीं मिलती हो। मन की शांति सबसे ज्यादा अनमोल है।

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