धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज— 296

पुराने समय में एक राजा सभी की मदद करता था और अपनी प्रजा की अच्छी तरह देखभाल करता था। प्रजा के हाल जानने के लिए एक दिन राजा वेश बदलकर अपने नगर में घूम रहा था।

राजा ने मार्ग में देखा कि एक मजदूर बड़ा पत्थर हटाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वहां कोई भी व्यक्ति उसकी मदद के लिए नहीं रुक रहा था। एक अन्य व्यक्ति पत्थर को नहीं हटा पाने की वजह से मजदूर को डांट रहा था। ये देखकर राजा ने उस व्यक्ति से कहा कि अगर तुम भी इस मजदूर की मदद करोगे तो ये पत्थर जल्दी हट जाएगा।

उस व्यक्ति ने कहा कि मैं इसका ठेकेदार हूं और मेरा काम पत्थर हटाने का नहीं है। ये बात सुनकर राजा खुद उस मजदूर के पास गए और पत्थर हटाने के लिए उसकी मदद करने लगे। कुछ ही देर में वह पत्थर रास्ते हट गया। गरीब मजदूर ने मदद करने वाले अनजाने व्यक्ति को धन्यवाद कहा।

पत्थर हटने के बाद राजा ने मजदूर के ठेकेदार से कहा कि भाई भविष्य में कभी भी तुम्हें एक मजदूर की जरूरत हो तो राजमहल आ जाना। ये बात सुनकर ठेकेदार हैरान हो गया। उसने ध्यान से देखा तो उसे समझ आया कि उसके सामने राजा हैं।

राजा को पहचानते ही ठेकेदार क्षमा याचना करने लगा। राजा ने उससे कहा कि दूसरों की मदद करना ही मानवता है। अगर हम अपने पद का घमंड करेंगे तो हमें कभी भी मान-सम्मान नहीं मिलेगा। ये बातों ठेकेदार को समझ आ गई और उसने भविष्य में दूसरों की मदद करने का संकल्प लिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जो लोग अपने पद का घमंड नहीं हैं और दूसरों की मदद करते हैं, उन्हें सभी पसंद करते हैं। ऐसे लोगों को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान मिलता है।

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