धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—346

एक बार एक किसान ने अपने पड़ोसी को बहुत बुरा भला कह दिया। लेकिन बाद में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो वो पश्चताताप के लिए एक संत के पास गया। उसने जाकर संत से अपने शब्द वापिस लेने का उपाय पूछा ताकि उसके मन का बोझ कुछ कम हो सके।
संत ने किसान से कहा एक काम करो तुम जाकर कही से खूब सारे आक के फूल, जिन्हें बच्चे हाबू कहते है—उन्हें एकत्रित करके लाओं। फिर उन्हें बाजार में लेकर उड़ा दो।

किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंचा गया। तो संत ने उस किसान से कहा – क्या तुम ऐसा कर सकते हो कि जाकर उन हाबूओं को पुनः समेट के ले आ सको। इस पर किसान वापिस गया तो देखता है कि हवा के कारण सारे हाबू उड़ गये है और कुछ जो बचे है वो समेटे नहीं जा सकते।

किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा तो संत ने उसे समझाया कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे शब्दों के साथ होता है। तुम बड़ी आसानी से किसी को कुछ भी बिना सोचे समझे कह सकते हो लेकिन एक बार कह देने के बाद वो शब्द वापिस नहीं लिए जा सकते। ठीक ऐसे ही जैसे एक बार बिखेर देने के बाद पंखों को वापिस नहीं समेटा जा सकता। तुम चाह कर भी उन शब्दों को वापिस नहीं ले सकते, इसलिए आज के बाद कभी भी किसी से कुछ कहने से पहले विचार कर बोलना।

Related posts

सत्यार्थप्रकाश के अंश—46

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—112

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—275