धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—334

रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य का नाम था मणि। मणि विवाहित थे और वे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से परेशान थे। मणि ने एक बार परमहंस से कहा कि गुरुदेव मैं तन-मन से भगवान की भक्ति में डूब जाना चाहता हूं।

परमहंस बोले कि तुम अभी अपने घर-परिवार की सेवा करके भगवान की ही सेवा कर रहे हो। तुम धन का संचय अपने लिए नहीं, बल्कि परिवार के लिए कर रहे हो। यह भी भगवान की सेवा है।

शिष्य ने कहा कि गुरुदेव मेरी इच्छा है कि कोई मेरे परिवार की जिम्मेदारी ले ले, ताकि मैं सभी चिंताओं से मुक्त होकर ईश्वर की भक्ति करना चाहता हूं। परमहंस ने शिष्य को समझाया ये अच्छी बात है कि तुम भगवान की भक्ति करना चाहते हो, लेकिन तुम अभी अपने पारिवारिक कर्तव्यों को पूरा करो। साथ ही, भक्ति भी करो। जैसे-जैसे तुम्हारे कर्तव्य पूरे होते जाएंगे, वैसे-वैसे तुम्हार मन भी भक्ति की राह पर आगे बढ़ता जाएगा।

धर्मप्रमी सुंदरसाथ जी, लोग अक्सर परिवार की जिम्मेदारियों से तंग आ जाते हैं। अधिकतर लोग सबकुछ छोड़कर भक्ति की राह पर चलना चाहते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को पहले अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए, ये भी ईश्वर की ही सेवा है। परिवार को बेसहारा छोड़कर की गई भक्ति निष्फल होती है।

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—198

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—510

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—284

Jeewan Aadhar Editor Desk