धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—9

जब बच्चा तीन मास का हो जाता है, तो कुल गुरू या कुल पुरोहित के हाथ से उसकी जिह्वा पर शहद से ऊँ या हरि या श्याम आदि नाम लिखवाते हैं, ताकि जब बच्चा बोलना प्रारम्भ करे तो मधु के समान मीठा बोले और परमात्मा का नाम ही बोले।

ब्रज में कृष्ण का अन्नप्राशन उत्सव बड़ी खुशी के मनाया जा रहा है। सभी ब्रजवासी नन्दबाबा के आंगन में एकत्रित हो रहे थे, इतने में कंस का भेजा हुआ तृणावर्त आया। उसके आते ही आंधी,तुफान , भूचाल इतनी जोर से आया कि दिन काले अन्धियारे में बदल गया। सबकी आँखों में धूल घुस गई। माता यशोदा ने अपनी आंखो साफ करने के लिए कृष्ण को नीचे बिठाया और अपनी आँखें साफ करने लगी।

तृणावर्त को मौका मिल गया, उसने कृष्ण को उठाया और आकाश में उड़ा कर ले गया। कृष्ण हँस रहा है और सोच रहा है कि-मामाजी कितने अच्छे है? मेरे खेलने के लिए कितने सुंदर—सुंदर खिलौने भेज रहे हैं? जब मैं 6 दिन का था तो भेजी गुडिय़ा-पूतना, 27 दिन का हुआ तो भेजा शकटासुर और आज भेजा है हैलीकाप्टर-तृणावर्त।

तृणावर्त कृष्ण को मथुरा की ओर ले जाने लगा। कृष्ण ने सोचा मथुरा में नहीं इसका उद्धार तो गोकुल में होगा, ऐसा सोचकर कृष्ण ने तृणावर्त को आकाश में ही मारना प्रारम्भ कर दिया। बेचारे के प्राण पखेरू उड़ गए। इस प्रकार तृणावर्त कृष्ण के हाथों सद्गति को प्राप्त हुआ। और कृष्ण को सही सलामत पाकर माता योशादा प्रसन्न हो उठी।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कृष्ण ने एक—एक करके सबका उद्धार किया और अंत में कंस को समाप्त किया। कृष्ण की ये कहानी बताती है हमें एक—एक करके अपने मन के विकारों को समाप्त करते हुए अंत में सद्गति पाने के लिए मोह रुप कंस को मारकर श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होना चाहिए। तभी हमारा कल्याण संभव है।

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