पुराने समय में एक राजा के पास सुख-सुविधा के सभी साधन थे, बड़ा राज्य, अपार धन-संपदा, विशाल सेना थी। राजा को अपनी इन चीजों का बहुत घमंड था। एक दिन उसके राज्य में एक संत पहुंचे। संत के उपदेश सुनने के लिए काफी लोग पहुंचते थे। धीरे-धीरे संत की प्रसिद्धि बढ़ने लगी।
कुछ ही दिनों के बाद संत के प्रवचन सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचने लगे। जब ये बात राजा को मालूम हुई तो राजा ने संत को अपने दरबार में आमंत्रित किया। संत के लिए कई पकवान बनवाए गए। उचित आदर-सत्कार किया गया।
भोजन के बाद जब संत अपनी कुटिया की ओर लौटने लगे तो राजा ने संत से कहा गुरुदेव मेरे पास सुख-सुविधा की हर चीज है, धन है। मैं इस संसार में सबसे ज्यादा सुखी हूं। आप चाहें तो मैं आपको भी ये सब सुख प्रदान कर सकता हूं। आप जो चाहें मुझसे मांग सकते हैं।
संत ने राजा से कहा कि राजन मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूं। क्योंकि, मेरी जरूरतें बहुत कम हैं, मेरा मन शांत है और मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है। वैसे ही संसार में सबसे सुखी उसी को कहा जा सकता है, जिसका अंतिम समय भी सुखी हो।
संत की ये बातें सुनकर राजा क्रोधित हो गया और संत को महल से बाहर जाने के लिए कह दिया। संत भी प्रभु का स्मरण करते हुए अपनी कुटिया में पहुंच गए। कुछ दिन बाद राजा के शत्रुओं में राज्य पर आक्रमण कर दिया।
राजा की सेना युद्ध में पराजित हो गई। विरोधी सेना ने राजा को बंदी बना लिया। अब राजा को मृत्युदंड देने की तैयारी होने लगी। ये सब देखकर उस राजा को संत की बात याद आ गई कि जिस व्यक्ति का अंतिम समय सुखी होता है, वही सुखी कहा जाता है।
तभी वहां वह संत भी पहुंचे। विरोधी राजा संत का बहुत सम्मान करते थे। संत को देखकर बंदी बना हुआ राजा उनके चरणों में गिर पड़ा और उसने कहा कि आपने सही कहा था, जिसका अंत सुखी होता है, वही सुखी कहा जा सकता है। अब मेरा अहंकार टूट चुका है।
संत ने राजा को उठाया और उसके विरोधी राजा से उसे छोड़ने का निवेदन किया। दूसरे राजा ने संत की बात मानकर बंदी राजा को आजाद कर दिया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सिर्फ भौतिक सुख-सुविधाओं की वजह से कोई इंसान सुखी नहीं हो सकता है। इसके लिए मन शांत होना जरूरी है। संतुष्ट लोग ही जीवन में सुखी और शांत रह सकते हैं।