धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—335

एक किसान देवी की पूजा में लीन रहता था। कुछ ही दिनों के बाद किसान की भक्ति से उसके सामने एक देवी प्रकट हुईँ। देवी ने किसान से कहा कि मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं, तुम जो चाहते हो, वह वरदान मुझसे मांग सकते हो। किसान सोच में पड़ गया कि वह देवी से क्या मांगे। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, उसने देवी से कहा कि देवी मैं अभी कुछ समझ नहीं पा रहा हूं, मैं आपसे कल वरदान मांगूगा। देवी इस बात के लिए तैयार हो गईं और अंतर्ध्यान हो गईं।

देवी के जाने के बाद किसान बहुत चिंतित हो गया। उसने सोचा कि मेरे पास रहने के लिए अच्छा घर नही है, मुझे घर मांग लेना चाहिए। कुछ देर बाद उसने सोचा कि जमींदार बहुत शक्तिशाली होता है, मुझे जमींदार बनने का वरदान मांगना चाहिए। किसान ने फिर सोचा कि जमींदार से ज्यादा शक्तिशाली तो राजा होता है, मुझे राजा बनने का वरदान मांग लेना चाहिए।

इस तरह सोच-विचार में पूरा दिन निकल गया और रात में भी उसे नींद नहीं आई, लेकिन किसान ये तय नहीं कर सका कि उसे देवी से वरदान में क्या मांगना चाहिए। सुबह होते ही देवी प्रकट हुईं और वर मांगने के लिए कहा।

किसान ने देवी से कहा कि देवी कृपया मुझे ये वर दीजिए कि मेरा मन भगवान की भक्ति में हमेशा लगा रहे, मैं हर हाल में संतुष्ट रहूं। देवी ने तथास्तु कहा और पूछा कि तुमने मुझसे धन-संपत्ति क्यों नहीं मांगी?

किसान ने कहा कि देवी मेरे पास धन नहीं है, लेकिन मेरे पास धन आने की उम्मीद से ही मैं बैचेन हो गया। दिनभर मानसिक तनाव रहा और रात में सो भी नहीं सका। इसीलिए मुझे ऐसा धन नहीं चाहिए, जिससे मेरे जीवन की सुख-शांति ही खत्म हो जाए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, अगर में सुख-शांति चाहते हैं तो हमें हर हाल में संतुष्ट रहना चाहिए। अगर हम असंतुष्ट रहेंगे तो जीवन में अशांति बनी रहेगी और हम कभी भी सुखी नहीं हो सकते हैं। आनंद चाहते हैं तो जीवन में संतुष्टि का भाव होना जरूरी है।

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