धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—338

एक राजा बूढ़ा हो गया, लेकिन उसकी यहां कोई संतान नहीं थी। बुढ़ापे में राजा को इस बात की चिंता होने लगी की मेरे बाद इस राज्य को कौन संभालेगा? राजा ने अपने गुरु से पूछा इस समस्या का हल पूछा। गुरु ने कहा कि राजन् अपनी प्रजा में से किसी योग्य व्यक्ति को उत्तराधिकारी बना देना चाहिए।

ये बात राजा को समझ आ गई, उसने अपने मंत्री से कहा कि प्रजा के बीच ये घोषणा करवा दें कि कल जो भी व्यक्ति सूर्यास्त से पहले मुझसे मिलने राज महल तक आ जाएगा, उसे इस राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया जाएगा। ये बात सुनकर मंत्री ने कहा कि महाराज ये तो बहुत ही आसान है, पूरी प्रजा ही राजा बनने के लिए यहां पहुंच जाएगी।

राजा ने कहा कि ऐसा नहीं होगा, मुझ तक सिर्फ योग्य व्यक्ति ही पहुंचेगा। आप घोषणा करवा दीजिए। मंत्री ने राजा की आज्ञा का पालन किया और प्रजा तक संदेश पहुंचा दिया। अगले दिन बड़ी संख्या में लोग उत्तराधिकारी बनने के लिए राज महल की ओर निकल पड़े। महल के बाहर राजा ने एक बड़े मेले का आयोजन किया था।

मेले में शराब थी, नाच-गाना हो रहा था, तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान थे। कई तरह के खेल वहां हो रहे थे। पूरी प्रजा उस मेले में ही उलझ गई। अपनी-अपनी पसंद के हिसाब से लोग मजा लेने लगे। सभी ये बात भूल गए कि उन्हें राजा से मिलने जाना है।

तभी वहां एक युवक ऐसा आया जो इन प्रलोभनों में नहीं फंसा, उसे सिर्फ अपने लक्ष्य तक पहुंचना था। वह सीधे राज महल की ओर चल दिया। मुख्य द्वार पर दो पहरेदार खड़े थे। उन्होंने युवक को रोका, लेकिन वह किसी तरह उनसे बचकर राज महल में प्रवेश कर गया। अंदर पहुंचते ही उसे राजा, मंत्री और उनके मिल गए। राजा ने उस युवक को राज्य का उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, लक्ष्य तक वही व्यक्ति पहुंचता है जो किसी भी प्रलोभन में नहीं फंसता है, बिना रुके हमेशा आगे बढ़ते रहता है।

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