एक गांव के जमींदार और उसके एक मजदूर की मौत एक साथ हुई। मरने के बाद दोनों एक साथ यमलोक पहुंचे। वहां पर यमराज ने कहा कि आज से तुम अपने मजदूर की सेवा करोगे और मजदूर से कहा कि तुम कोई काम नहीं करोगे। जमींदार को बहुत अटपटा लगा कि धरती पर तो इसका उल्टा होता था। इस बात से परेशान होकर जमींदार ने कहा कि भगवान आखिर हमसे क्या अपराध हो गई है। जो ऐसी सजा दे रहे हैं। मैं तो प्रतिदिन मंदिर जाता था भगवान की पूजा के साथ-साथ बहुमूल्य चीजें दान करता था।
जमींदार की बात सुनकर यमराज ने मजदूर से पूछा कि तुम धरती पर क्या करते थे? मजदूर ने कहा कि भगवन मैं दिन भर जमींदार के यहां मजदूरी करता था और जो मिलता था उसी में गुजारा करता था। जो मिला उसी में संतोष के साथ खुश हो जाता था। कभी भी भगवान से कुछ नहीं मांगा। गरीबी के कारण प्रतिदिन दिन मंदिर में दिपक नहीं जला पाता था। लेकिन घर के सामने दिपक जला के रख देता था जिससे गली में अंधेरा नहीं रहता था। आने जाने वालों को सुविधा होती थी। मजदूर की बात सुनकर यमराज ने जमींदार से कहा कि सुन लिया मजदूर के पुण्य काम।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, दुनिया में भगवान धन-दौलत और अहंकार से खुश नहीं होते। मेहनत और ईमानदारी से कमाने वाले सभी लोगों पर भगवान प्रसन्न होते हैं। सच्चे मन से भगवान की आराधना करना का फल मिलता हैं लेकिन आराधना किसी लालच में करना बहुत बुरा होता है। ईमानदारी से की गई काम का फल अच्छा होता है।