धर्म

ओशो : भ्रम का अंतर

एक युवा डाक्टर ने अपनी प्रेमिका से रामांटिक लहजे में कहा: तुम्हारी आंखों में जीवन का टानिक हैं। जब उदास होता हूं, तो तुम्हारा सामीप्य ऐसा महसूस होता है, जैसे आखिरी सांसे गिनते हुए मरीज को आक्सीजन मिल जाए। तुम्हारे घने काले केशों में क्लोरोफिल जैसी मीठी मदहोशी तुम्हारे…।
बस, उस स्त्री ने कहा: बकवास बंद करो। मैं तुम्हारी प्रेमिका हूं या डिस्पेन्सरी?
मगर डाक्टर बेचारा अपना निवेदन कर रहा है।
तुम कहते हो, जो पूछते हो, उसमें तुम मौजूद रहो तो अच्छा हैं। चीजें साफ होती हैं।
एक जेबकतरा नए फैशन के कपड़ो की किताब देख रहा था। उसके चेले ने पूछा: क्यो गुरू अब क्या दर्जी बनने का इरादा है?

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नहीं, मैं देख रहा हूं कि नयी फैशन के कपड़ो में जेबं कहां-कहां बनायी जाती हैं।
एक व्यापारी ने अपनी नयी दुकान के बाहर एक बोर्ड लगा रखा था: यह दुकान आपकी जरूरतों के लिए खोली गयी हैं। अब आपको कहीं दूर जाकर अपने को ठगाने की जरूरत नहीं हैं।
यही ठगा सकते हैं उनका मतलब साफ हैं। हालांकि उसको खयाल नहीं होता कि उसने क्या लिख दिया हैं। अब ठगाने के लिए दूर जाने की कोई जरूरत नहीं हैं।
गुरूदेव यथार्थ और भ्रम में अंतर स्पष्ट कर दें, तो बड़ी कृपा होगी, भक्त ने विनती की। आपका यहां उपस्थित रहना और मेरा प्रवचन करना यथार्थ हैं, परन्तु मेरा यह सोचना कि मेरी बाप पर आप ध्यान दे रहे हैं, मेरा भ्रम हैं। संत ने समाधान किया।
शिष्य ने पूछा है:यथार्थ और भ्रम में अंतर क्या हैं। तो गुरू ने कहा कि मेरा यहां उपस्थित रहना और मेरा प्रवचन करना यथार्थ हैं। और मेरा यह समझना कि आप यहां उपस्थित है और मुझे सुन रहे हैं, मेरा भ्रम हैं।
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