धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से — 351

एक बार बुद्ध से मिलने उनका बहुत पुराना शिष्य आया। वह बुद्ध से मिला, बातें करी लेकिन हर समय उसके चेहरे में एक उदासी सी छाई थी।

जिसे देख बुद्ध ने उससे पूछा, “तुम बहुत परेशान मालूम लगते हो। क्या बात है?”

शिष्य बोला, “मैं भगवान पर बहुत विश्वास रखता हूं, पूजा पाठ करता हूं लेकिन फिर भी मेरे साथ कुछ अच्छा नही होता। मेरे जीवन में हमेशा दुख रहता है। क्या भगवान में विश्वास करना दुख का कारण बन सकता है?”

बुद्ध मुस्कुराते हुवे उससे बोले, “मेरी एक बात ध्यान से सुनना, एक बार एक आदमी ने भगवान की भक्ति करना शुरू करा। वह हर दिन मंदिर जाता, पूजा करता, भजन गाता, और सोचता कि उसकी भक्ति के बदले भगवान उसके सारे दुखों को दूर कर देंगे और उसके साथ सबकुछ अच्छा होगा। लेकिन धीरे-धीरे, उसकी जिंदगी में समस्याएँ बढ़ने लगीं। कभी उसका व्यापार डूबने लगा, कभी परिवार में लड़ाई होने लगी।

उसने सोचा, ‘मैं तो भगवान का इतना मानता हूं, फिर भी मेरी जिंदगी में इतने कष्ट क्यों हैं?’ और फिर वह दिन-रात भगवान से सवाल करने लगा कि ‘तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो? मेरी भक्ति के बदले मुझे दुख क्यों दे रहे हो?’

उसकी भक्ति धीरे-धीरे शिकायतों में बदलने लगी। वह हर दिन भगवान से शिकायत करता और परेशान रहता। अंत में वह इतना निराश हो गया कि उसने भगवान की भक्ति करना ही छोड़ दिया।

बुद्ध ने अपने शिष्य की तरफ देखा और बोले, “अब सोचो, उस आदमी के दुखों का कारण क्या था? भगवान की भक्ति या फिर उसकी इच्छाओं का पूरा ना होना?”

“अक्सर जो लोग भगवान में विश्वास करते हैं, पूजा पाठ करते हैं, भजन कीर्तन करते हैं, वो इस उम्मीद में रहते हैं की उनकी सारी समस्याएँ हल हो जाएंगी। जब ऐसा नहीं होता, तो वे दुखी हो जाते हैं।

बुद्ध की बात सुनकर शिष्य समझ गया कि दुख का कारण भक्ति नहीं बल्कि वो इच्छाएं हैं जो हम ऊपरवाले से मांगते रहते हैं और जीवन में आने वाली समस्याएं हमारे कर्मों का परिणाम।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, असली समस्या भगवान की भक्ति करना नहीं है, बल्कि यह सोच है कि भगवान हर समस्या का तुरंत समाधान कर देंगे। हम भगवान की भक्ति इसलिए करते हैं ताकि हमें कुछ मिल सके और जब ऐसा नहीं होता तो हमें दुख होता है। फिर हम सोचते हैं कि हमने इतनी भक्ति करी और बदले में मिला कुछ नही।

हम ये भूल जाते हैं की इस जीवन में हमें क्या मिलना है, क्या होना है, वह हमारे कर्मों पर निर्भर करता है। हम अपने बुरे कर्मों से मिलने वाले फल को भूल जाते हैं और भक्ति में लग जाते हैं, फिर सोचते हैं कि भगवान सब कुछ अच्छा करेगा।

लेकिन ऐसा नहीं है, अगर आपके कर्म खराब हैं, आपने दूसरों के साथ गलत किया है, फिर आप कितनी ही भक्ति कर लें, उसका वैसा ही फल आपको मिलेगा। भगवान में विश्वास करो, भक्ति करो, लेकिन अपने कर्मों का महत्व समझो।

जीवन के हर सुख-दुख में सीखने की क्षमता विकसित करो। भगवान कोई बाहरी शक्ति नहीं, बल्कि हमारे अंदर की चेतना हैं। जब हम उस चेतना से जुड़ते हैं, तो हम दुख से ऊपर उठ जाते हैं।”

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