धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—355

किसी नगर में एक राजा रहता था। राजा बूढ़े होने को आ गए पर उनको कोई बेटा नहीं हुआ सिर्फ एक बेटी थी। राजा को बहुत चिंता होने लगी की अब मेरा इतना बड़ा साम्राज्य कैसे संभलेगा? इसकी देखभाल कौन कर पायेगा? एक दिन अचानक भगवान का नाम लेकर राजा ने यह निर्णय लिया की कल सुबह जो भी हमारे दरवाजे पर आने वाला पहला व्यक्ति होगा मैं अपनी बेटी से उसका विवाह कर दूंगा और अपना नया उत्तराधिकारी बना दूंगा।

अगले दिन सुबह–सुबह एक फटी पुरानी कमीज पहने एक लड़का दरवाजे पर दस्तक देता है। राजा ने प्रभु इच्छा समझ कर अपने निर्णय के अनुसार अपनी बेटी की शादी उस लड़के के साथ कर देता है और अपना सारा राज–पाट उसे देकर पहाड़ों पर सन्यास को चला जाता है।

अब ये नया राजा राजपाट के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने की कोशिश करता है। राज्य कैसे सम्हालना है? युद्ध में कैसे जाना है? क्या तैयारी होनी चाहिए? ताकि बहुत अच्छा राजा साबित हो। उसने अलग–अलग काम अपने अलग–अलग मंत्रियों को दे रखा था जैसे राजकोष वित्तमंत्री को, सेना की बागडोर सेनापति को और ऐसे ही अन्य कई मंत्रियों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर रखा था।

नए राजा के संचालन में राज्य बहुत बढ़िया से चल रहा था। सारी प्रजा पुराने राजा की बहुत तारीफ कर रही थी कि क्या राजा चुना है महाराज ने! समस्त प्रजा के हमदर्द बनकर सदैव खड़े रहते है। यहाँ राज्य सभा के समस्त कमरे में समय–समय पर सब आ जा सकते थे लेकिन एक कमरे में सिर्फ राजा ही जाते थे। ये इस कोठरी में 10–15 दिन में जाते थे और किसी को जाने की अनुमति नहीं थी यहाँ तक की रानी को भी नहीं।

अब समस्त दरबारियों को जिज्ञासा हुई की आखिर इस कमरे में ऐसा क्या है की कोई उसके अंदर देख भी नहीं सकता। जानने की इक्षा सभी को थी लेकिन कोई पूछ नहीं पा रहा था। फिर बड़ी हिम्मत करके वित्तमंत्री ने पूछ लिया कि माफ़ कीजियेगा, राजा साहब लेकिन आखिर इस कमरे में प्रवेश वर्जित क्यूं है? क्या है इस कोठरी में? राजा ने उन्हें डांट दिया और कुछ नहीं बताया। कुछ दिन बाद सबने कहा की अब सेनापति ही पूछ सकते है,इनकी बात राजा को माननी पड़ेगी। जब सेनापति राजा से कमरे के बारे में चर्चा किया तो राजा ने उन्हें भी कुछ नहीं बताया।

यहाँ से सबके मन में एक ही विचार आ रहा था कि अब रानी ही हैं जो इस जिज्ञासा को समाप्त कर सकती हैं। सब ने रानी से कहा कि आखिर इस कमरे में ऐसा क्या हैं कि महाराज आपको भी जाने की अनुमति नहीं देते। फिर क्या था! रानी ने तो एकदम जिद्द पकड़ ली कि अब तो मुझे जानना हैं। राजा के बहुत समझाने के बावजूद भी जब रानी नहीं मानी तो राजा उन्हें ले गए और कमरे का दरवाजा खोला।

देखा तो उसमे कुछ भी नहीं था, एक फटी कमीज और कुछ फटे कपडे टंगे थे। सब ये देखकर हैरान थे तो राजा ने बताया कि मैं अपने शुरुआत को याद करने के लिए यहाँ आता हूँ। मुझे जब कभी यह अहंकार हो जाता हैं कि मैं राजा हूँ, मैं इस राज्य का सम्राट हूँ, मैं ही सबसे बढ़िया हूँ तो यहाँ आ जाता हूँ। आधे घंटे बैठा रहता हूँ। अपने शुरुआत को याद करता हूँ और अपने आप को बताता हूँ कि मैं यही था। यही मेरी शुरुआत थी।

वो तो पुराने महाराज का शुक्र मनाओं कि मुझे राजा बना दिया। थोड़ी देर के बाद जब अहंकार टूट जाता है तो साफ़ और सच्चे मन से बाहर आ जाता हूँ और अपने प्रजा की सेवा में लग जाता हूँ।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, अगर जिंदगी में कभी आपको अहंकार आ जाये, आप अपने को बेस्ट मानने लगो, आपको लगे कि मेरे जैसा तो कोई है ही नहीं, तो अपने शुरुआत को याद करिये , अपने संघर्ष वाली पुरानी जिंदगी को याद करिये। ऐसे में आप सरल होने लगेंगे, विनम्र होने लगेंगे, जमीन से जुड़ा हुआ महसूस करने लगेंगे। इसीलिए कहा जाता है कि पैसा इंसान को ऊपर ले जाता है, इंसान पैसा को कभी ऊपर नहीं ले जा पाता।

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