एक दिन महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव आश्रम में अपने शिष्यों को प्रवचन दे रहे थे। वे भक्ति और ज्ञान का महत्व समझा रहे थे। तभी उनके एक शिष्य ने पूछा कि ईश्वर हर जगह है तो दिखाई क्यों नहीं देते? अगर भगवान हैं तो उन्हें कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
संत नामदेव ने एक अन्य शिष्य को एक लोटा पानी और थोड़ा सा नमक लाने के लिए कहा। शिष्य तुरंत ही ये दोनों चीजें लेकर आ गया। आश्रम में उपस्थित लोग सोच रहे थे कि पानी और नमक का इन प्रश्नों से क्या संबंध है।
संत नामदेव ने शिष्य से कहा कि पानी में नमक मिला दो। शिष्य ने तुरंत ही गुरु बात मानकर ऐसा ही कर दिया। इसके बाद संत ने प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति को लोटा देते हुए कहा कि तुम्हें इस लोटे में नमक दिखाई दे रहा है?
शिष्य ने कहा कि नमक तो पानी में घुल गया है, वह दिखाई नहीं दे रहा है। तब संत ने कहा कि इस चखकर देखो, क्या इसमें नमक का स्वाद आ रहा है? शिष्य ने पानी चखा तो वह खारा था। उसने कहा कि इसमें नमक है, पानी खारा है। इसके बाद संत ने कहा कि इस पानी को कुछ देर उबलों। उबलते-उबलते सारा पानी भाप बनकर उड़ गया। संत ने शिष्य से लोटे में देखने के लिए कहा और पूछ कि क्या इसमें कुछ दिख रहा है?
शिष्य ने लोटे में देखते हुए कहा कि गुरुजी पानी तो भाप बनकर उड़ गया, इसमें नमक के कण दिखाई दे रहे हैं। संत ने कहा कि तुम्हें पानी में मिला हुआ नमक दिखाई नहीं दिया, लेकिन तुम उसका अनुभव कर पाए, ठीक उसी तरह भगवान भी इस सृष्टि के कण-कण में विराजमान है, लेकिन वह दिखाई नहीं देता, उसे सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।
जब हमने खारे पानी को उबालो तो सारा पानी भाप बनकर उड़ गया और हमें नमक के कण दिखाई दिए। ठीक इसी तरह भगवान को पाने के लिए हमें भक्ति, ज्ञान, ध्यान और धर्म-कर्म के जरिए खुद की बुराइयों को खत्म करना होगा। मन की पूरी शुद्धि के बाद ही भगवान को प्राप्त किया जा सकता है।