धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—375

बहुत पुरानी कहानी है, एक गांव में एक बुढ़ी अम्मा रहती थी जो माँ दुर्गा की अनन्य भक्त थी। उन्हें आँखों से दिखाई नहीं देता था लेकिन वे सारा दिन मंदिर में, माँ दुर्गा की भक्ति आराधना में लीन रहती थी। उनकी भक्ति और निष्ठा देखकर आखिर माँ दुर्गा प्रसन्न हुई और एक दिन बूढ़ी अम्मा के सामने प्रकट होकर बोली, “मैं आपकी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ, इसलिए आपको वरदान देना चाहती हूँ, लेकिन आप मुझसे सिर्फ एक वरदान माँग सकती हैं।”

यह सुनकर बूढी अम्मा ने तुरंत हाथ जोड़कर कहा, “माता रानी, मैं तो सिर्फ सच्चे मन से आपकी भक्ति करती हूँ। कुछ माँगने के बारे में तो मैंने कभी सोचा भी नहीं और मुझे कुछ नहीं चाहिए।”

लेकिन माँ दुर्गा नहीं मानी और बोली,” लेकिन हम आपको एक वरदान दिए बिना नहीं रहेंगे, आपको कुछ मांगना ही पड़ेगा।” इस पर बूढी अम्मा ने कहा,” ठीक है माता रानी , तो मुझे कल तक का समय दीजिए, मैं अपने बहु बेटे से भी पूछ लूँगी।” माँ दुर्गा मान गई ।

बूढी अम्मा ने घर जाकर अपने बेटे बहू से सारी बातें बताई और सलाह माँगी। बेटे ने कहा,” आप माँ दुर्गा से बहुत सारा पैसा माँग लीजिए। ” बहु बोली, “नहीं नहीं, आप एक प्यारे से पोते या पोती का वरदान माँग लीजिए ” बूढी अम्मा ने अपनी एक अभिन्न सहेली से भी इस बारे में बताया तो सहेली ने कहा, “तुमने जीवन में अपने लिए कभी कुछ नहीं माँगा, तुम्हारी आँखे भी नहीं है, तुमने दुनिया की सुन्दरता को कभी देखा ही नहीं। इसलिए अब तुम माँ दुर्गा से अपने लिए आँखों की ज्योति मांग लो।”

बूढी अम्मा सोच में पड़ गई, उसने सोचा अगर वो अपने लिए आँखे माँग ले, तो बेटे की मनोकामना पूरी नहीं होगी, अगर बेटे की मनोकामना माँग ली तो बहू की मनोकामना पूरी नहीं होगी, तो वो ऐसा क्या माँगे ताकि सबकी आशाएं पूरी हो जाए।

बहुत सोचने के बाद अम्मा सही निर्णय मिल गया और वो चैन से सो गई। अगले दिन जब वो मंदिर गई तो माँ दुर्गा फिर प्रकट हो गईं और बूढ़ी अम्मा से वरदान मांगने को कहा। बूढ़ी अम्मा ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की, “हे, माता रानी, अगर आप मुझसे सचमुच प्रसन्न हैं तो मुझे ये वरदान दें कि मैं अपने सुन्दर से पोते या पोती को सोने की बड़ी सी कटोरी में दूध और खीर खाते, पीते हुए अपनी आँखों से देख सकूँ।”

बूढ़ी अम्मा की बुद्धि और सरलता देख माँ दुर्गा मुस्कराई और बोली, “मैंने तो आपको एक वरदान माँगने को कहा था लेकिन तुमने तो एक वरदान में ही सबकुछ माँग लिया, धन, वंश, आँखों की ज्योति और लंबी उम्र। ठीक है, जो तुमने माँगा सब पूरा होगा। तथास्तु। ” यह कहकर माँ दुर्गा अन्तर्ध्यान हो गई और बूढ़ी अम्मा को आँखों की ज्योति मिल गई। वो अपने परिवार के साथ सुख सुविधा में रहने लगी।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कोई भी निर्णय लेने से पहले अच्छी तरह सोच विचार लेना अच्छा होता है। किसी भी कार्य के तुरंत हां बोलने से अच्छा है कि आप कुछ समय उस पर विचार करें और अपनी बुुद्धि और विवेक का सही इस्तेमाल करके ही निर्णय लें।

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