एक बार रात के समय एक शिष्य अपने गुरु के पास आया और बोला, “गुरुदेव, मैं बहुत परेशान हूँ। जहाँ जाता हूँ, मुसीबतें मेरा पीछा करती हैं। क्या करूँ कि जीवन में ये सब कम हो जाएँ?”
संत मुस्कुराए और बोले, “आओ, जंगल की ओर चले।” दोनों चलते-चलते एक जगह पहुँचे जहाँ तेज़ हवा चल रही थी।
संत ने शिष्य से कहा, “अंधेरा काफी है, जरा इस दीपक को जलाओ और जलते रहने देना, ताकि हमें जानवरों के आने का पता चलता रहे।” शिष्य ने दीपक जलाया, पर वह बार-बार बुझ जाता।
थोड़ी देर बाद थककर बोला, “गुरुदेव, यह संभव नहीं। यहां हवा बहुत तेज़ है।”
संत बोले, “ दीपक को अपने दोनों हाथों से ढक लो और फिर जलाओ।” शिष्य ने वैसा ही किया—अब दीपक स्थिर जलने लगा।
संत बोले, “बेटा, जीवन की मुसीबतें भी इस हवा की तरह हैं। उन्हें रोका नहीं जा सकता, पर अपने मन की लौ को बचाया जा सकता है। जो व्यक्ति अपने धैर्य और विश्वास के हाथों से अपने मन की लौ को ढक लेता है, उसके जीवन की रोशनी कभी नहीं बुझती।”
फिर संत ने समझाया— “मुसीबतें कम नहीं होतीं, लेकिन तुम मजबूत हो जाओ, तो उनका असर कम हो जाता है। जैसे तूफ़ान आते रहते है, पर मजबूत पेड़ उसे झेल जाते है।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मुसीबतों से भागने से नहीं, उन्हें समझने और सहने से जीवन आसान होता है। जो भीतर स्थिर है, वही बाहर के तूफ़ान से अडिग रहता है।









