धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 385

अर्जुन को यह अहंकार था कि ब्रह्माण्ड में सिर्फ वही श्री कृष्ण के परम भक्त हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन के इस अहंकार से भली-भांति परिचित थे। इसलिए उन्होंने अर्जुन का घमंड तोड़ने का निश्चय किया और अर्जुन को अपने साथ टहलने के लिए लेकर गए।

टहलते समय उनकी नज़र एक गरीब ब्राह्मण पर जाती हैं जो सूखी घास खा रहा था। और उसकी कमर पर तलवार लटकी हुई थी। यह देखकर अर्जुन को बड़ा अचंभा हुआ और ब्राह्मण से पूछा कि ‘आप तो अहिंसा के पुजारी हैं, जीव हिंसा के भय से सूखी हुई खास खाकर अपना गुजारा करते हैं लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार आपने क्यों अपने साथ रखा हैं।’

अर्जुन के सवाल पर ब्राह्मण ने जवाब दिया कि ‘ मैं कुछ लोगो को दण्डित करना चाहता हूं’। अर्जुन ने अचंभित होकर पूछा ‘आपके शत्रु कौन हैं?’ तब ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं उन 4 लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं।

सबसे पहले ब्राह्मण ने नारद का नाम लिया और कहा कि नारद मेरा पहला निशाना है, क्योंकि वह मेरे प्रभु को कभी आराम नहीं करने देते हैं, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं। उसके बाद उन्होंने द्रौपदी का नाम लिया और कहा कि ‘द्रौपदी ने मेरे प्रभु को उस वक्त पुकारा जब वह जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल भोजन छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाने जाना पड़ा। उसकी हिम्मत तो देखिए। उसने मेरे प्रभु को जूठा खाना खिलाया।’

अब अर्जुन ने बड़ी जिज्ञासा के साथ पूछा कि ‘हे ब्राह्मण देवता आपका तीसरा शत्रु कौन है?’ तब ब्राह्मण ने कहा कि ‘मेरा तीसरा शत्रु वह हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया।’

अर्जुन ने उसके बाद उत्सुकतावश पूछा कि ‘ब्राह्मण देव आपका चौथा शत्रु कौन है?’ तब ब्राह्मण ने जवाब देते हुए कहा कि ‘मेरा चौथा शत्रु है अर्जुन। अर्जुन ने धृष्टता का परिचय देते हुए मेरे प्रभु को युद्ध में अपना सारथी ही बना लिया। उसको भगवान के कष्ट का जरा भी ज्ञान नहीं रहा। यह कहते हुए उस गरीब ब्राह्मण की आंखों से आंसू छलक पड़े।’

ब्राह्मण का जवाब सुनते ही अर्जुन के सिर से कृष्णभक्ति का घमंड हमेशा के लिए उतर गया। उसने कृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा कि प्रभु ब्रह्मांड में आपके अनगिनत भक्त है। इन सभी के सामने मैं तो कुछ भी नही हूं।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, घमंड करने से पहले यह बात सोच लेना चाहिए कि जिस चीज पर आप घमंड कर रहे हैं उसमें आपसे आगे कई लोग हो सकते हैं और विशिष्टता के साथ उस काम में शुमार किए जाते हो।

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