धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—206

एक समय की बात है, गौंतूर नाम के एक गांव में एक पंडित जी रहा करते थे। उन्होंने एक साहूकार के पास 500 रुपये यह सोचकर जमा करा दिए कि जब उनकी बेटी की शादी होगी, तो ये पैसे उनके काम आएंगे। देखते ही देखते समय निकलता गया और बेटी शादी योग्य हो गई। पंडित जी ने अपनी बेटी के लिए योग्य वर देखना शुरू कर दिया। उन्हें अपनी पुत्री के लिए एक लड़का पसंद भी आया, जिसके बाद पंडित जी साहूकार के पास अपने पैसे लेने गए।

साहूकार ने उन्हें पैसे देने से इंकार करते हुए कहा- मेरे पास आपने कोई पैसे जमा नहीं कराए। आपके पास क्या सबूत है कि आपने मेरे पास पैसे रखे थे। क्या आपके पास उसका कोई लिखित प्रमाण है?

साहूकार की ये बातें सुनकर पंडित जी परेशान हो जाते हैं और वे समझ जाते हैं कि साहूकार ने उनके पैसे हड़प लिए हैं। एक दिन पंडित जी मंदिर से घर लौट रहे थे तभी उनके दिमाग में विचार आया कि उन्हें उस साहूकार की शिकायत राजा से करनी चाहिए। हो सकता है राजा इस परेशानी का कोई हल निकाल दें।

पंडित जी बिना देरी किए राजा से मिलने के लिए पहुंच गए और वहां जाकर उन्होंने अपनी परेशानी राजा के सामने रखी। पंडित जी की बात सुनकर राजा ने कहा कि कल नगर के लिए हमारी सवारी निकलेगी, तुम उस समय उस साहूकार की दुकान के सामने जाकर खड़े हो जाना। राजा की बात सुनकर पंडित जी अपना झोला उठाकर घर को निकल गए।

अगले दिन राजा की सवारी निकली। नगरवासियों ने उन्हें फूलों की माला पहनाई व आरती उतारी। पंडित जी राजा के कहे अनुसार उस दुकान के सामने खड़े हो गए। राजा की सवारी साहूकार की दुकान के सामने आई, तो राजा ने पंडित जी को देखाकर प्रणाम किया और उनसे कहा कि आप यहां क्या कर रहे हैं। आप हमारे गुरू हैं, आप हमारे साथ बग्घी में चलिए। पंडित के बग्घी में बैठने के बाद साहूकार ने राजा की पूजा की और उन्हें फूलों की माला पहनाई।

उसके बाद राजा की बग्घी आगे बढ़ गई। पंडित जी को कुछ दूर आगे जाने के बाद राजा ने बग्घी से उतार दिया और बोला कि मैंने अपना काम कर दिया है। अब आगे देखों क्या होता है। पंडित और राजा के संबंध को देखकर साहूकार सोच में पड़ गया और उसे घबराहट होने लगी कि कही पंडित उसकी शिकायत राजा से न कर दे। वह घर जाकर रात भर सो नहीं पाया।

सुबह दुकान पर जाकर सबसे पहले साहूकार ने अपने मुनीम को पंडित जी को सह सम्मान दुकान में लाने के लिए कहा। मुनीम पंडित जी को ढूंढने निकल गया। कुछ देर बात पंडित जी उसे नगर में एक पेड़ की छाव में आराम करते हुए नजर आए। मुनीम ने पंडित जी को कहा कि साहूकार ने उनको दुकान में लेकर आने के लिए भेजा है।

मुनीम, पंडित जी को सम्मान के साथ दुकान लेकर जाता है। साहूकार पंडिज जी को आदर सम्मान के साथ बिठाते हुए कहता है- मैंने पुराने खाते की अच्छी तरह जांच की और उसमें आपने मुझे पांच सौ रुपए दिए थे, इसकी जानकारी मिली है। यह पैसा पीछे दस सालों से मेरे पास जमा है, जिस वजह से इसका ब्याज मिलाकर यह बारह हजार पांच सौ रूपए हो गए हैं। फिर साहूकार उन्हें तेरह हजार पांच सौ रुपए देता हुए कहता है कि आपकी बेटी मेरी भी बेटी की तरह है, तो ये एक हजार रुपए मेरी तरफ से उसकी शादी के लिए हैं। साहूकार ने पंडित जी को तेरह हजार पांच सौ रुपए देकर बड़े ही प्रेम के साथ विदा किया। इस तरह पंडित जी को उनके अपने पैसों के साथ ही उसका ब्याज और शादी के लिए साहूकार की तरफ से एक हजार रुपये अतिरिक्त मिल गए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, अगर कोई किसी को परेशान कर रहा है, तो उसके सामने गिडगिडाने की बजाय ऐसे व्यक्ति से मदद मांगे, जो इस समस्या से उसे निकाल सकता है।

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Jeewan Aadhar Editor Desk