किसी गांव में एक संत आए। उनकी ख्याति सुनकर गांव का एक वृद्ध किसान उनसे मिलने पहुंचा। उसने अपने कुछ कष्ट बताए और मुक्ति की राह पूछी। संत बोले- ‘तुम वृद्ध हो गए हो, चलो में तुम्हें अपने साथ भक्ति के मार्ग पर लिए चलता हूं। ऐसा करने से तुम कष्टों से पूर्णतः मुक्त हो जाओगे।’
किसान को अपने परिवार से मोह था। वह बोला- “महाराज, जरा पोते, पोतियों के साथ समय गुजार लूं फिर मैं आपके साथ चलूंगा।’ संत ने हामी भर दी। कुछ वर्षो के बाद संत वापस आए तो वृद्ध किसान बोला- “जरा अपने पोते, पोतियों का विवाह देख लूं फिर मैं आपके साथ चलूंगा।
संत ने हामी भर दी। कुछ वर्षो के बाद फिर संत आए तो उन्होंने देखा कि वृद्ध किसान के घर के बाहर एक कुत्ता बैठा है। संत ने योगबल से जान लिया कि वृद्ध किसान की मृत्यु हो गई है और अब उसने इस कुत्ते के रूप में नया जन्म लिया है। मृत्यु तक रिश्तों के मोह में पड़े रहने से उसे कुत्ते का जन्म मिला है।
संत ने योगबल से कुत्ते को उसके पूर्वजन्म को याद दिलाई तो वह बोला- “मेरे पड़पोते, पड़पोतियां अभी नादान हैं। आजकल जमाना खराब है। मुझे उनकी रखवाली करनी है। वो थोड़े समझदार हो जाएं फिर आपके साथ चलूंगा। संत हंसकर बोले- ‘अब नहीं आउंगा क्योंकि तुम फिर कोई बहाना खोज लोगे।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, संसारी जीव कभी अपने परिवार के मोह से मुक्त नहीं हो पाता। इंसान पूरा जीवनकाल अपने परिवार के प्रति दायित्वों को निभाता है। लेकिन जब वह अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर होता है, तब भी वो रिश्तों के मोह में बंधा रहता है। इंसान को चाहिए कि कम से कम वृद्धावस्था में तो रिश्तों का मोह त्यागे और ईश्वर का नाम स्मरण कर मोक्ष का रास्ता पकड़े।