धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद के प्रवचनों से-1

एक बार हस्तिनापुर में गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर और दुर्योधन दोनों को बुलाया और कहा,’जाओ, संसार की सबसे गंदी वस्तु खोज कर लाओ। जिसकी अधिक गंदी वस्तु होगी वही प्रथम होगा।’ दोनों चल पड़े।
युधिष्ठिर को एक सुअर दिखाई दिया जो नाली में मंख मार रहा था। उसको पकडऩे के लिए हाथ बढ़ाया तो अंदर से आवाज आई, ‘यह गंदा कैसे हो कसता है? यदि इसे परमात्मा ने न बनाया होता तो इतनी गंदगी फैल जाती कि जीवन दूभर हो जाता।
थोड़ा आगे बढ़ा तो कुत्ता मिला, सोचा यह सारा दिन बैठा मालिक की रोटी खाता रहता है, इसे पकड़ लूं। परंतु फिर अंदर से आवाज आई कि यह तो बड़ा वफादार है, मालिक पर यदि कोई संकट आ जाए तो यह अपनी जान तक देने को तैयार रहता है। रात को सारी रात जागकर मालिक की जान-माल की रखवाली करता है। उसे भी छोड़ दिया। आगे बढ़ा तो युधिष्ठिर का पांव गंदगी(मलमूत्र) में धंस गया।
सोचने लगा कि इससे गंदी चीज कोई नहीं है। ज्यों ही उठाने के लिए हाथ बढ़ाया तो आवाज आई,’गंदगी मैं नहीं, गंदा इंसान है, जिसके सहयोग से मुझे गंदगी का नाम दिया गया है। मैं सुबह लाल-लाल खट्टा-मीठा सेब था, तूने मुझे अपनी भूख शांत करने के लिए खाया और फिर गंदा करके बाहर निकाल दिया। यदि मुझो गाय खा लेती तो मैं गोबर बनताप और दुनिया मेरा प्रयोग जलाने में करती,फिर उसकी राख बनती। राख भी बर्तन साफ करने के काम आ जाती।इसीलिए मैं गंदा नहीं, मानव के संसर्ग से गंदा बन गया।’
युधिष्ठिर की समझ में आ गया कि मानव ही इस संसार की सबसे बदतर गंदी वस्तु है। प्रात: काल हुआ, दोनों गुरुदेव के सामने उपस्थित हुए। युधिष्ठिर ने नम्रतापूर्वक निवेदन कियाा, ‘गुरुदेव! मैं ही इस दुनिया की सबसे गंदी वस्तु हूं।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिला कोय।
जो मन खोजा आपना तो मुझसे बुरा न कोय।।

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—254

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—171

सत्यार्थप्रकाश के अंश—16

Jeewan Aadhar Editor Desk