धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—35

माँ बाप ब्रह्मण होने से और किसी साधु के शिष्य होने पर ब्रह्मण या साधु नहीं हो सकते किन्तु ब्रह्मण और साधु अपने उत्तम गुण ,कर्म,स्वभाव से होते हैं जसे कि परोपकारी हों। सुना हैं कि जैसे रूम के पोप अपने चेलों को कहते थे कि तुम अपने पाप हमारे सामने कहोगे तो हम क्षमा कर देंगे। बिना हमारी सेवा और आज्ञा के कोई भी स्वर्ग में नहीं जा सकता। जो तुम स्वर्ग में जाना चाहते चाहो तो हमारे पास जितने रूपये जमा करोगे उतने ही की सामग्री स्वर्ग में तुम को मिलेगी। ऐसा सन कर जब कोई आंख के अन्धे और गांठ के पूरे स्वर्ग में जाने की इच्छा करके पोप जी को यथेष्अ रूपया देता था तब वह पोप जी ईसा और मरियम की मुर्ति के सामने खड़ा होकर इस प्रकार की हुण्डी लिखकर देता था- हे खुदावनद ईसामसी। अमुक मनुष्य ने तेरे नाम पर लाख रूपये स्वर्ग में आने के लिए हमारे पास जमा कर दिये हैं। जीवन आधार पत्रिका यानि एक जगह सभी जानकारी..व्यक्तिगत विकास के साथ—साथ पारिवारिक सुरक्षा गारंटी और मासिक आमदनी भी..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
जब यह स्वर्ग में आवे तब तू अपने पिता के स्वर्ग के राज्य में पच्चीस सहस्त्र रूपयों में बागबगीचा और मकानात,पच्चीस सहस्त्र में सवारी शिकारी और नौकर चाकर,पच्चीस सहस्त्र रूपयों में खाना पीना कपड़ा लत्त और पच्चीस सहस्त्र रूपये इस के इष्ट मित्र भाई बन्धु आदि जियाफत के वास्ते दिला देना। फिर उस हुण्डी के नीचे पोप जी अपनी सह करके हुण्डी उसके हाथ में देकर कह देते थे कि जब तू मेरे तब इस हुण्डी को कबर में अपने सिराने धर लेने के लिए अपने कुटुम्ब को कह रखना। फिर तुझे ले जाने के लिए फरिश्ते आवेंगे तब तुझे और तेरी हुण्डी को स्वर्ग में ले जा कर लिखे प्रमाणे सब चीजें तुझ को दिला देंगे। नौकरी की तलाश है..तो जीवन आधार बिजनेस प्रबंधक बने और 3300 रुपए से लेकर 70 हजार 900 रुपए मासिक की नौकरी पाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

अब देखिये जानों स्वर्ग का ठेका पोप जी ने ले लिया हो। जब तक यूरोप देश में मूर्खता थी तभी तक वहां पोप लीला बहुत नहीं चलती थी परन्तु अब विद्या होने से पोप जी की झूठी लीला बहुत नहीं चलती किन्तु निर्मूल भी नहीं हुई।
वैसे ही आय्र्यवत्र्त देश में जानो पोप जी ने लाखों अवतार लेकर लीला फैलाई हो। अर्थात् राजा और प्रजा को विद्या न पढऩे देना, अच्छे पुरूषों का संग न होने देना,रात दिन बहकाने के सिवाय दूसरा कुछ भी काम नहीं करता है। परन्तु यह बात ध्यान में रखना कि जो-जो छलकपटादि व्यवहार करते हैं वे ही पोप कहाते हैं। जो कोई उन में भी धार्मिक विद्वान् परोपकारी है वे सच्चे ब्रह्मण और साधु हैं।

अब उन्हीं छली कपटी,स्वार्थी लोगों मनुष्यों को ठग कर अपना प्रयोजन सिद्ध करने वालों ही का ग्रहण पोप शब्द से करना और ब्रह्मण तथा साधु नाम से उत्तम पुरूषों का स्वीकार करना योग्य है। देखो जो कोई भी उत्तम ब्रह्मण वा साधु न होता तो वेदादि सत्यशास्त्रों के पुस्तक स्वरसहित का पठन-पाठन जैन, मुसलमान,ईसाई आदि के जाल से बचाकर आर्यो को वेदादि सत्यशास्त्रों में प्रीतियुक्त वर्णाश्रमों में रखना ऐसा कौन कर सकता ? सिवाय ब्रह्मण साधुओ के। विष में भी अमृत के ग्रहण करने के समान पोपलीला से बहकरने में भी आय्र्यों का जैन आदि मतों से बचा रहना जानों विष में अमृत के समान गुण समझना चाहिये।
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जब यजमान विद्याहीन हुए और आप कुछ पाठ पूजा पढ़ कर अभियान में आके सब लोगों ने परस्पर सम्मति करके राजा आदि से कहा कि ब्रह्मण और साधु अदण्डय हंै। देखो ब्रह्मणों ने हन्तव्य: साधुर्न हन्तव्य: ऐसे ऐसे वचन जो कि सच्चे ब्रह्मण और सच्चे साधुओं के विषय में थे सो पोपों ने अपने पर घटा लिये। और भी झूठे-झूठे वचनयुक्त ग्रन्थ रच कर उन में ऋषि मुनियों के नाम धर के उन्हीं के नाम से सुनाते रहें। उन प्रतिष्ठत ऋषि मुनियों के नाम से अपने पर से दण्ड की व्यवस्था उठवा दी। पुन: युथेष्टाचार करने लगे अर्थात् ऐसे करडे नियम चलाये कि उन पोपों की आज्ञा के बिना सोना,उठना,बैठना जाना,आना, खाना,पीना, आदि भी नहीं कर सकते थे। राजाओं को ऐसा निश्चय कराया कि पोप संज्ञक कहने मात्र के ब्रह्मण साधु चाहे सो करें। उन को कभी दण्ड न देना अर्थात् उन पर मन में भी दण्ड देने की इच्छा न करनी चाहिये।
जब ऐसी मूर्खता हुई तब जैसी पोपों की इच्छा हुई वैसा करने कराने लगे अर्थात् इस बिगाड़ के मूल महाभारत युद्ध पूर्व एक सहस्त्र वर्ष से प्रवृत्त हुए थे। क्योंकि उस समय मं ऋषि मुनि भी थे तथापि कुछ-कुछ आलस्य,प्रमाद ,ईष्र्या द्वेष के अंकुर उगे थे वे बढ़ते-बढ़ते वृद्ध हो गये। जब सच्चा उपदेश न रहा तब आय्र्यावत्र्त में आविद्या फैलकर परस्पर लडऩे झगडऩे लगे।
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Jeewan Aadhar Editor Desk