धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—412

एक आदमी सड़क के किनारे समोसा बेचा करता था। अनपढ़ होने की वजह से वह अख़बार नहीं पढ़ता था। ऊँचा सुनने की वजह से रेडियो नहीं सुनता था और आँखे कमजोर होने की वजह से उसने कभी टेलीविजन भी नहीं देखा था। इसके बाबजूद वह काफी समोसे बेच लेता था।

उसकी बिक्री और नफे में लगातार बढ़ोतरी होती गई। उसने और ज्यादा आलू खरीदना शुरू किया, साथ ही पहले वाले चूल्हे से बड़ा और बढ़िया चूल्हा खरीद कर ले आया। उसका व्यापार लगातार बढ़ रहा था, तभी हाल ही में कॉलेज से बी. ए. की डिग्री हासिल कर चुका उसका बेटा पिता का हाथ बँटाने के लिए चला आया।

उसके बाद एक अजीबोगरीब घटना घटी। बेटे ने उस आदमी से पूछा, “पिताजी क्या आपको मालूम है कि हम लोग एक बड़ी मंदी का शिकार बनने वाले हैं ?” पिता ने जवाब दिया , “नहीं, लेकिन मुझे उसके बारे में बताओ।” बेटे ने कहा- “अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ बड़ी गंभीर हैं।
घरेलू हालात तो और भी बुरे हैं। हमें आने वाले बुरे हालत का सामना करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए । ”

उस आदमी ने सोचा कि बेटा कॉलेज जा चुका है, अखबार पढ़ता है, और रेडियो सुनता है, इसलिए उसकी राय को हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए। दूसरे दिन से उसने आलू की खरीद कम कर दी और अपना साइन बोर्ड नीचे उतार दिया।

उसका जोश खत्म हो चुका था। जल्दी ही उसी दुकान पर आने वालों की तादाद घटने लगी और उसकी बिक्री तेजी से गिरने लगी। पिता ने बेटे से कहा, “तुम सही कह रहे थे। हम लोग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। मुझे ख़ुशी है कि तुमने वक्त से पहले ही सचेत कर दिया।”

बेटे की सलाह पर काम करते—करते वह लगातार कम समोसे बनाता गया और एक दिन नौबत ये आ गई कि उसे दुकान पर ताला लगाकर घर पर बैठना पड़ा। एक गलत सलाहकार के कारण उसने अपना पूरा धंधा चौपट कर लिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जरुरी नहीं पढ़ा—लिखा विद्वान व्यक्ति आपको हर बार सही सलाह ही देगा। आपको सबकी सलाह सुननी चाहिए और अपने विवेक से उन पर विचार करना चाहिए। आंख मूंदकर किसी की सलाह को नहीं मानना चाहिए।

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