धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—422

एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया- मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ..? इसका क्या कारण है ?

राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये ..अचानक एक वृद्ध खड़े हुये बोले – महाराज आपको यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है..। राजा ने घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढ़ेर के पास बैठ कर अंगार ( गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं..।

राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा, महात्मा ने क्रोधित होकर कहा “तेरे प्रश्न का उत्तर आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं,वे दे सकते हैं।” राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा। राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था, वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच—नोच कर खा रहे थे।

राजा को महात्मा ने भी डांटते हुए कहा— मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास समय नहीं है…आगे आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा। वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है। राजा बड़ा बेचैन हुआ, बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न..।

उत्सुकता प्रबल थी..राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर उस गाँव में पहुंचा। गाँव में उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही। जैसे ही बच्चा पैदा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया। राजा को देखते ही बालक हँसते हुए बोलने लगा। राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुन लो – तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई राजकुमार थे।

एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे। अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली। हमने उसकी चार बाटी सेंकी। अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा वहां आ गये।

अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा – “बेटा ,मैं दस दिन से भूखा हूँ, अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो, मुझ पर दया करो, जिससे मेरा भी जीवन बच जाएं। इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले, तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा आग …? चलो भागो यहां से …।

वे महात्मा फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही..किन्तु उन भईया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो क्या मैं अपना मांस नोचकर खाऊंगा? भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये।

मुझसे भी बाटी मांगी…किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ …? अंतिम आशा लिये वो महात्मा, हे राजन! आपके पास भी आये,दया की याचना की। दया करते हुये ख़ुशी से आपने अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी।

बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और बोले, तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा।बालक ने कहा “इस प्रकार उस घटना के आधार पर हम अपना अपना भोग, भोग रहे हैं और वो बालक मर गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, धरती पर एक समय में अनेकों फल-फूल खिलते हैं,किन्तु सबके रूप, गुण,आकार-प्रकार,स्वाद भिन्न होते हैं। इसी प्रकार एक समय पर जन्म लेने वाले बच्चों का रंग—रुप और भाग्य भी अलग—अलग होता है। यह सब हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण ही होता है। इसलिए सदा अच्छे कर्म करें, ताकि हम इस जीवन के साथ—साथ अपना अगला जन्म भी सार्थक बना सके।

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