अज्ञातवास के समय सभी पांडवों ने अपना नाम और पहचान छिपाई थी। इस दौरान अर्जुन राजा विराट के महल में ब्रहणला यानी किन्नर के रूप में रहे। अर्जुन किन्नर कैसे बने? इसके पीछे एक कथा है। हुआ ये कि जब पांडव वनवास में थे तब 1 दिन माधव यानी भगवान श्री कृष्ण उनसे मिलने पहुंचे, तब प्रभु ने अर्जुन से कहा कि युद्ध के समय तुम्हें दिव्यास्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए तुम देवताओं को प्रसन्न करो। श्री कृष्ण की बात सुनकर अर्जुन तपस्या करने निकल पड़े।
भगवान भोलेनाथ ने एक भील का रूप धारण कर उनकी परीक्षा ली और अभिभूत होकर उसे कई दिव्यास्त्र प्रदान किए। इन सब बातों से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने अर्जुन को स्वर्ग में आमंत्रित किया, जिसके बाद स्वर्ग में भी देवताओं ने अर्जुन को कई दिव्यास्त्र दिए। तब भगवान इंद्र ने अर्जुन को संगीत और नृत्य सिखाने के लिए चित्र सेन के पास भेजा। चित्र सेन ने भगवान का आदेश पाकर अर्जुन को संगीत और नृत्य की कला में निपुण कर दिया और वही जब अर्जुन संगीत और नृत्य की शिक्षा ले रहे थे तब देव लोक की सबसे सुन्दर अप्सरा उर्वशी उन पर मोहित हो गई।
उर्वशी ने अर्जुन के सामने प्रणय निवेदन किया लेकिन पूर्ववंश की जननी होने के चलते अर्जुन ने उन्हें माता के समान बताया। ये बात सुनकर उर्वशी को क्रोध आ गया और उसने अर्जुन को 1 साल तक किन्नर बनने का श्राप दे दिया। जब ये बात अर्जुन ने भगवान इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि ये श्राप अज्ञातवास के दौरान वरदान का काम करेगा। श्राप के मुताबिक अज्ञातवास के दिनों में अर्जुन किन्नर के रूप में ही विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य भी सिखाया। जब राजा विराट पर पड़ोसी राजा ने हमला किया तो अर्जुन ने राजा विराट की पराजय को विजय में बदल दिया। इसके बाद राजा विराट को किन्नर बने अर्जुन की सच्चाई का पता चला। बाद में उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से हुआ था। महाभारत के समय राजा विराट ने पांडवों का साथ दिया।
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