धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—429

एक बार लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है?” पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये।

फिर वे बोले-“बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है।” बालक – क्या सभी उतने ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं?

पिताजी – हाँ बेटे।

बालक के कुछ पल्ले पड़ा नहीं, उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम इज्जत तो किसी की ज्यादा क्यो होती है? सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा। रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?

बालक – लगभग 300 रूपये।

पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छोटे कील बना दूं, तो इसकी कीमत क्या हो जायेगी?बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का।

पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?

बालक कुछ देर सोचता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला “तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी।” पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमें नही है कि अभी वो क्या है, बल्कि इसमें है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है।” बालक अपने पिता की बात समझ चुका था।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें स्वयं को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। इससे हमारे स्वयं का विकास होता है। इसलिए हमें लगातार सीखते रहने की आदत अपनानी चाहिए।

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