परमात्मा के विरोधी, नास्तिक, पापी , इनके साथ कभी मत रहो,नहीं तो सूर्य चन्द्रमा के समान दाग भी लग सकता हैं। अच्छे कार्य करनेवाले देवता होते हैं और बूरे कार्य करने वाले दानव होते हैं। दूसरों को दु:ख देने वाले दानव होते हैं।
सत्संग, सेवा, भक्ति अमृत है। अमृत का पान वही कर सकता है जो माया रूपी मोहिनी से दूर रहता है और परब्रहा परमात्मा के चरणों में स्वयं को समॢपत कर देता है। माया सभी को आकर्षित करती है। धर्म प्रेमी सज्जनों मन का कभी भरोसा मत करो। यह माया कब किसको पतन के गर्त में डाल दे इसका कोई भरोसा नहीं। मैं जितेन्द्रिय हूँ। ऐसा अभिमान कभी मत करो।
माया को दूर हटाने के लिए मन को कृष्णमय बनाओं। बड़े-बड़े ऋषि मुनि भी भटक जाते हैं फिर आम मनुष्य का तो कहना ही क्या? आज के इस कलिकाल में बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। हरिसंकीर्तन और हरि सुमिरण ही माया से बचने के लिए अचूक दवा है।